योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 54

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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तीसरा अध्याय
श्रीकृष्णचन्द्र का जन्म


पर जब सावतीं बार देवकी ने गर्भ धारण किया तो पितृस्नेह के आगे उसका निज प्रतिज्ञा-पालन का विचार डाँवाडोल हो गया। किसी जाति या धर्म में इस बात की व्यवस्था नहीं है कि जो प्रतिज्ञा बलात कराई जाये उसका उल्लंघन करने वाला पाप का भागी हो सकता है। दुष्ट कंस ने देवकी के पुत्रों का वध तो करा ही डाला था, वसुदेव के दूसरे पुत्रों को भी[1] मरवा डाला।

क्या किसी लेखनी में शक्ति है कि उस पिता के अतिरिक्त संताप का चित्र खींच सके जिसके सम्मुख अपने ही बालकों का सिर काटा जाय! कौन पिता है जो ऐसी दशा में उनके प्राण की रक्षा की एक चेष्टा न करेगा! बच्चों की स्वाभाविक मृत्यु माता-पिता के जीवन को कष्टप्रद बना देती है। बहुतेरे ऐसे हैं जो अपने बच्चे की अकाल मृत्यु के संताप में पिघल-पिघलकर जान गँवा देते हैं, या जीवन-भर शोकसागर में पड़े रहते हैं। पर यहाँ तो एक-दो की कौन कहे, छः पुत्रों का उसके सामने वध हुआ। वसुदेव जी इस संताप से महादुःखी हो गए। इसको सहन करने की शक्ति समाप्त हो गई और उन्होंने दृढ़ प्रतिज्ञा कर ली कि जैसे भी होगा अब इस दुष्ट के हाथ से अपने बच्चों को बचाऊँगा। इस सावतें गर्भ की रक्षा के विषय में पुराण में लिखा है कि देवताओं ने देवकी के गर्भ से बच्चा निकाल रोहिणी के गर्भ में डाल दिया[2] और यह बात प्रकट की गई कि देवकी का गर्भ नष्ट हो गया। इस कथन से दो परिणाम निकाल सकते हैं-

  • एक यह कि देवकी का गर्भ छिपाया गया और रोहिणी का गर्भवती होना प्रसिद्ध किया गया। रोहिणी गोकुल ग्राम में नंद के घर रखी गई और देवकी के बच्चा उत्पन्न हुआ तो उसको तत्काल रोहिणी की गोद में रख कर यह प्रसिद्ध कर दिया गया कि देवकी का गर्भ नष्ट हो गया।
  • दूसरा यह कि वास्तव में बलराम, जो रोहिणी के ही पुत्र थे और देवकी का सातवाँ गर्भ भय, चिन्ता या किसी अन्य कारण से नष्ट हो गया था। इससे यह परिणाम निकला कि जिस सातवें बच्चे की इस प्रकार गुप्त रीति से रक्षा की गई, वह बलराम था।

देवकी सातवीं बार गर्भवती हुई। इस पर तो पहले पहरा बैठता था, पर इस बारी पूरी रखवाली करने की आज्ञा हुई। एक सुरक्षित स्थान में बन्द कर उन पर पहरा-चौकी बैठा दिया गया और ऐसा प्रबन्ध किया गया जिसमें किसी प्रकार से भी वह अपने बालक को न बचा सके। ऐसा मालूम होता है कि इस बालक के वध के लिए कंस की ओर से जैसा उत्तम प्रबन्ध किया गया था वैसा ही दूसरे पक्ष वाले इसके बचाने में सन्नद्ध थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जो दूसरी स्त्रियों से थे।
  2. रोहिणी वसुदेव की दूसरी पत्नी का नाम है।

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योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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