योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 55

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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तीसरा अध्याय
श्रीकृष्णचन्द्र का जन्म


इधर कंस ने पूरे तौर पर पहरा-चौकी बैठा दिया और ऐसा प्रबन्ध किया कि बच्चा किसी प्रकार बचने न पावे। उधर वसुदेव और उनके मित्रों ने बच्चे के बचाने के लिए पूरी-पूरी युक्ति की, जिसका परिणाम यह हुआ कि दुष्ट कंस की सारी युक्तियाँ निष्फल हुई और वसुदेव और उसके मित्र अपने यत्न में सफल हुए। जिस रात्रि में कृष्ण का जन्म हुआ उसी रात्रि को उन्हें राजमहल से निकालकर गोकुल पहुँचा दिया और वहाँ से नंद की नवजात बालिका को लाकर देवकी के साथ शैय्या पर लिटा[1] दिया।

सारांश यह कि भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की आठवीं तिथि को मथुरा की राजधानी में कृष्णचन्द्र ने जन्म लिया। रात अँधेरी थी। मेघों का भयंकर शब्द मानो पापियों का हृदय कम्पायमान कर रहा था। आँधी इतने वेग से चल रही थी मानों वह पृथ्वी तल से इमारतों को उखाड़कर फेंक देगी और वर्षा ऐसी हो रही थी मानो वह प्रलय करके ही साँस लेगी। यमुना बाढ़ पर थी। जिस रात्रि कृष्ण ने जन्म लिया वह रात्रि वास्तव में भयंकर थी क्योंकि प्रकृति देवी क्रोध से विकट रूप धारण किये हुए थी।

बच्चे के जन्म लेते ही वसुदेव उसे कपड़े में लपेट बड़ी सावधानी से महल से बाहर निकले। कहते हैं कि उस रात्रि सारे पहरे वाले योगनिद्रा से ऐसे मतवाले हो गये कि उन्हें इस बात की सुध न रही कि कौन महल से निकलता है और कौन अन्दर जाता है। पर इसमें संदेह नहीं कि या तो पहरे वालों की असावधानी से वसुदेव को बाहर निकल आने का अवसर मिला अथवा पहरे वाले जान-बूझकर वसुदेव का हित समझकर मचल गए हों। तात्पर्य यह कि वसुदेव कृष्ण को छिपाकर रनिवास से बाहर निकल आये। यह समय आधी रात का था। बाहर निकलते ही शेषनाग[2] ने अपने फण से कृष्ण पर छत्र लगा दिया और इस प्रकार उन्हें भीगने से बचा लिया। अब यमुना में पैर रखा तो आँधी बंद हो गई, आकाश-मण्डल स्वच्छ होने लगा और तारे चमकने लगे। नदी-नालों के जल का वेग कुछ कम हो गया। झील तथा सरोवर में रंग-बिरंगे पुष्प महकने लगे। जंगली वृक्षों में पुष्प लग गये और उन पर पक्षिगण किलोल करने लगे। देवता पुष्प-वर्षा करने लगे। अप्सराएँ नाचने लगीं। सारांश यह कि सृष्टि मात्र में बधाइयाँ बजने लगीं। कहाँ तो यमुना का जल अथाह हो रहा था और कहाँ कृष्ण महाराज का पैर चूमते ही वह इतनी उतर गई कि वसुदेव उसमें से पैदल पार हो गए।[3] दूसरे तट पर नन्द बाट देख रहे थे। उन्होंने कृष्ण को ले लिया और अपनी लड़की को वसुदेव के हवाले किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागवत पुराण में इस विषय में एक कथा है- जिन दिनों देवकी जी गर्भ से थीं तो वे एक दिन यमुना में स्नान करने गई। वहाँ उनका नंद की पत्नी यशोदा से वार्तालाप हुआ। आपस में जब दुःख की चर्चा चली तो यशोदा ने देवकी को वचन दिया कि मैं तेरे बालक की रक्षा करूँगी, अपना बालक बदले में तुम्हें दे दूँगी। प्रिय पाठक! यह बात भारत के इतिहास में कुछ नई नहीं है। ऐसे दृष्टान्त बहुत मिलते हैं जिनमें राजकुमारों की इस तरह रक्षा की गई है और दूसरी स्त्रियों ने उनके हेतु अपने प्यारे पुत्रों का बलिदान दिया है। महाराणा उदयसिंह (चित्तौड़) इसी तरह बचाए गए। उनकी दासी ने कुँवर को फूल के टोकरे में रखकर दुर्ग से बाहर कर दिया और उसकी जगह पालने पर अपना लड़का लिटा दिया। जब उदयसिंह के शत्रु उसको ढूँढ़ते हुए वहाँ आये तो उसने रोते हुए पालने की ओर इशारा कर दिया जिस पर शत्रुओं ने उसी लड़के को उदयसिंह समझकर एक ही कटार से उसका वध कर दिया।
  2. नाग एक जंगली जाति का नाम था तो यमुना के आसपास रहती थी। इस पुस्तक में आगे भी कई स्थान पर इसका वर्णन आयेगा। इतिहास में भी इस जाति का वर्णन आया है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि इस जाति का कोई सरदार वसुदेव का सहायक बन गया है।
  3. सहृदय पाठक! आप तो समझ ही गए होंगे कि इसके क्या अर्थ हैं। यह पुराण की रसीली भाषण है। इसे मैंने इसलिए उदधृत कर दिया है ताकि आप भी इसके आनन्द में मग्न हों। यह कृष्ण का प्रथम अलौकिक कार्य है।

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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