योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
तीसरा अध्याय
श्रीकृष्णचन्द्र का जन्म
सारांश यह कि भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की आठवीं तिथि को मथुरा की राजधानी में कृष्णचन्द्र ने जन्म लिया। रात अँधेरी थी। मेघों का भयंकर शब्द मानो पापियों का हृदय कम्पायमान कर रहा था। आँधी इतने वेग से चल रही थी मानों वह पृथ्वी तल से इमारतों को उखाड़कर फेंक देगी और वर्षा ऐसी हो रही थी मानो वह प्रलय करके ही साँस लेगी। यमुना बाढ़ पर थी। जिस रात्रि कृष्ण ने जन्म लिया वह रात्रि वास्तव में भयंकर थी क्योंकि प्रकृति देवी क्रोध से विकट रूप धारण किये हुए थी। बच्चे के जन्म लेते ही वसुदेव उसे कपड़े में लपेट बड़ी सावधानी से महल से बाहर निकले। कहते हैं कि उस रात्रि सारे पहरे वाले योगनिद्रा से ऐसे मतवाले हो गये कि उन्हें इस बात की सुध न रही कि कौन महल से निकलता है और कौन अन्दर जाता है। पर इसमें संदेह नहीं कि या तो पहरे वालों की असावधानी से वसुदेव को बाहर निकल आने का अवसर मिला अथवा पहरे वाले जान-बूझकर वसुदेव का हित समझकर मचल गए हों। तात्पर्य यह कि वसुदेव कृष्ण को छिपाकर रनिवास से बाहर निकल आये। यह समय आधी रात का था। बाहर निकलते ही शेषनाग[2] ने अपने फण से कृष्ण पर छत्र लगा दिया और इस प्रकार उन्हें भीगने से बचा लिया। अब यमुना में पैर रखा तो आँधी बंद हो गई, आकाश-मण्डल स्वच्छ होने लगा और तारे चमकने लगे। नदी-नालों के जल का वेग कुछ कम हो गया। झील तथा सरोवर में रंग-बिरंगे पुष्प महकने लगे। जंगली वृक्षों में पुष्प लग गये और उन पर पक्षिगण किलोल करने लगे। देवता पुष्प-वर्षा करने लगे। अप्सराएँ नाचने लगीं। सारांश यह कि सृष्टि मात्र में बधाइयाँ बजने लगीं। कहाँ तो यमुना का जल अथाह हो रहा था और कहाँ कृष्ण महाराज का पैर चूमते ही वह इतनी उतर गई कि वसुदेव उसमें से पैदल पार हो गए।[3] दूसरे तट पर नन्द बाट देख रहे थे। उन्होंने कृष्ण को ले लिया और अपनी लड़की को वसुदेव के हवाले किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भागवत पुराण में इस विषय में एक कथा है- जिन दिनों देवकी जी गर्भ से थीं तो वे एक दिन यमुना में स्नान करने गई। वहाँ उनका नंद की पत्नी यशोदा से वार्तालाप हुआ। आपस में जब दुःख की चर्चा चली तो यशोदा ने देवकी को वचन दिया कि मैं तेरे बालक की रक्षा करूँगी, अपना बालक बदले में तुम्हें दे दूँगी। प्रिय पाठक! यह बात भारत के इतिहास में कुछ नई नहीं है। ऐसे दृष्टान्त बहुत मिलते हैं जिनमें राजकुमारों की इस तरह रक्षा की गई है और दूसरी स्त्रियों ने उनके हेतु अपने प्यारे पुत्रों का बलिदान दिया है। महाराणा उदयसिंह (चित्तौड़) इसी तरह बचाए गए। उनकी दासी ने कुँवर को फूल के टोकरे में रखकर दुर्ग से बाहर कर दिया और उसकी जगह पालने पर अपना लड़का लिटा दिया। जब उदयसिंह के शत्रु उसको ढूँढ़ते हुए वहाँ आये तो उसने रोते हुए पालने की ओर इशारा कर दिया जिस पर शत्रुओं ने उसी लड़के को उदयसिंह समझकर एक ही कटार से उसका वध कर दिया।
- ↑ नाग एक जंगली जाति का नाम था तो यमुना के आसपास रहती थी। इस पुस्तक में आगे भी कई स्थान पर इसका वर्णन आयेगा। इतिहास में भी इस जाति का वर्णन आया है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि इस जाति का कोई सरदार वसुदेव का सहायक बन गया है।
- ↑ सहृदय पाठक! आप तो समझ ही गए होंगे कि इसके क्या अर्थ हैं। यह पुराण की रसीली भाषण है। इसे मैंने इसलिए उदधृत कर दिया है ताकि आप भी इसके आनन्द में मग्न हों। यह कृष्ण का प्रथम अलौकिक कार्य है।
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