गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 16
अर्थात, जो अन्न सबेरे बनाया जाता है, पकाया जाता है, वह शाम तक बासी निर्वीर्य गतरस हो जाता है; इस यातयाम अन्न से बना शरीर भला कब तक टिक सकता है? प्रत्येक मंत्र का महत्त्व यही है कि वह आयातताम रहे; तात्पर्य जिस कार्य में प्रयुक्त किया जाय वह सफल हो; मनोरथ-सिद्धि ही मंत्र की महत्ता है। दक्षिण भारत में नर्मदा के तीर पर कोई सिद्ध महात्मा वासुदेवानन्दजी सरस्वती रहा करते थे। ये महाराष्ट्रीय ब्राह्मण थे। ऐसी मान्यता है कि ये महात्मा दत्तत्रेय के अवतार थे। बाल्यावस्था में वे अपने गुरु के यहाँ पढ़ने जाया करते थे; रास्ते में भयानक जंगल पड़ता था; एक दिन शेर सामने पड़ गया; वे डरकर भागने लगे; सहसा उनको याद पड़ गया कि गुरुजी ने बताया था कि अमुक मंत्र पढ़कर मुट्ठीभर धूल शेर पर फेंक दोगे तो शेर वहीं स्वम्भित हो जायेगा। उन्होंने तुरन्त ही मंत्र पढ़कर मुट्ठीभर धूल शेर पर फेंक दी और भाग गये। शाम को लौटते हुए देखा कि वह शेर वहीं निश्चेष्ट पड़ा हुआ है। दूसरे दिन उन्होंने अपने गुरुदेव से सम्पूर्ण घटना निवेदित की; गुरुदेव ने उत्तर दिया,‘मंत्रों में पूर्ण निष्ठा के कारण ही तुमको यह सिद्धि प्राप्त हुई, अन्यथा अनेक जप करने वालों के मंत्र में शक्ति नहीं होती।’ अन्ततोगत्वा तात्पर्य यह कि पति, पुत्र, पिता, सखा सुहृद्, गुरु अथवा शिष्य जिस किसी रूप में भगवत्-सन्निधान प्राप्त हो वही सौभाग्यातिशय है। अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड-नायक, सर्वेश्वर, सर्वशक्तिमान् प्रभु आप्ताकाम, पूर्णकाम, परम-निष्काम होते हुए भी भाव के भूखे है; भक्त की भावानानुसार ही उनका प्राकट्य होता है। एक कथा है- उमापतिजी तिवारी नामक कोई गृहस्थ अयोध्या में निवास करते थे। वहाँ के सन्त-वैरागी, गृह-त्यागी भी उनका विशेष सम्मान किया करते थे। मान्यता थी कि उमापतिजी महर्षि वशिष्ठ के अवतार हैं। इनके यहाँ एक बार कोई चूड़ी पहिरानेवाली आई; घर की सभी स्त्रियों ने चूड़ी पहनी; जनक-नन्दिननी जानकी ने घर की छोटी बहू बनकर चूड़ी पहनी; चूड़ियों के दाम का हिसाब लगाने लगा तो चुड़िहारिन ने कहा कि ? ‘महाराज! मैंने तीन बहुओं को चूड़ी पहनायी है। अतः तीन के पैसे चाहिए।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ग०पुराण 2/13/15