गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 185

Prev.png

गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 5

विरचिताभयं वृष्णिधुर्य ते
चरणमीयुषां संसृतेर्भयात्।
करसरोरुहं कान्त कामदं
शिरसि धेहि नः श्रीकरग्रहम्।।5।।

अर्थात्, हे यदुवंशशिरोमणे! जनम-मरण परम्परा अवच्छेदरूप संसृति-चक्र से भयभीत हो जो जन आपके चरणारविन्दों की शरण में आते हैं उनको आपके हस्तारविन्द अभय प्रदान करते हैं। हे कान्त! सम्पूर्ण अभिलाषाओं की पूर्ति एवं वासनाओं का खण्डन तथा लक्ष्मी का पाणिग्रहण करने वाले कर-सरोरुहों को आप हमारे सिर पर विन्यस्त करें।

‘वरद निघ्नतो नेह किं वधः’ ‘विखनसार्थितो विश्वगुप्तये’ जैसी कठोर उक्तियों की तुलना में ‘न खलु गोपिकानन्दनो भवान् अखिलदेहिनामन्तरात्मदृक्’ जैसी उक्ति मधुर है। गोपांगनाएँ अनुभव करती हैं कि उनके इस विनम्र भाव से प्रसन्न होकर भगवान् श्रीकृष्ण उनसे कह रहे हैं, गोपांगनाओं! हम तुम पर प्रसन्न हैं। कहो, हम तुम्हारा कौन प्रिय कार्य करें?’ वे उत्तर देती हैं ‘हे कान्त! ‘नः शिरसि श्रीकरग्रहं करसरोरुहं कामदं धेहि।’ अपने सर्वकामदायक हस्तारविन्द को हमारे सिर पर धारण करें। हम आपके विप्रयोगजन्य तीव्रताप से संतप्त हैं। आपके कर-सरोरुह शीतल एवं परमाह्लादक हैं। प्राणी के सिर पर भगवद् हस्तारविन्द का विन्यास आधिदैविक, आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक सम्पूर्ण पाप-ताप का समूल उन्मूलन करने वाला है। अखिलेश्वर प्रभु के दिव्य हस्तारविन्द की आतपत्र-छाया से प्राणी के सम्पूर्ण दुःखों का अन्त होकर उसे अभय की प्राप्ति होती है।

आपके हस्तारविन्द ‘कामद’ हैं; ‘कामं द्यति खण्डयति इति कामदं’ कामवासना-जाल को छिन्न-भिन्न करने वाले हैं। वस्तुतः परात्पर, पूर्णतम, परब्रह्म भगवान् के मंगलमय हस्तारविन्द की आतपत्र-छाया ही सर्व प्रकार के काम-जाल का समूल उन्मूलन करने वाली है।

Next.png

संबंधित लेख

गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः