गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 11चलसि यद् व्रजाच्चारयन् पशून् हे नाथ! आपके चरणारविन्द स्वतः विकसित कमल से भी अधिक सुन्दर एवं सुकोमल हैं। अतः हे कान्त! जब आप गोचारण करते हुए वृन्दावन में निरावरण चरणों से अटन करते हैं तब इस दुस्सह आशंका से कि कहीं वृन्दाटवी के कुश-काल, शिल, तृणांकुरादि आपके निरावरण चरणारविन्दों में गड़ते होंगे, हमारा मन विकल हो जाता है। गोपांगनाएँ कह रही हैं, हे नाथ! आपके चरण अत्यन्त कोमल, कमल से भी अधिक कोमल एवं शोभायुक्त हैं; अतः जिस समय आप गाय बछड़ों को चराते हुए निरावरण चरणों से वृन्दावन एवं गोवर्धन-धाम के वनों में घूमते हैं, उस समय हम अत्यन्त सन्तप्त हो उठती हैं। आपके चरणारविन्दों में दूर्वा, शकु, काश, शर्करादि के अंकुर गड़ते होंगे, यह आशंका ही हमारे विशेष संताप का कारण बन जाती है। वन के शिल-तृणांकुरों के कारण आपको अवश्य ही अवसाद होता होगा क्योंकि आपके चरणाविन्द तो स्वतः विकसित सुकोमल कमल से भी अधिक कोमल हैं एतावता इस विचारमात्र से ही व्रजबालाएँ अत्यन्त उद्विग्न हो उठती हैं। |