गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 213

Prev.png

गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 6

व्रजजनार्तिहन् वीर! योषितां,
निजजनस्मयध्वंसनस्मित।
भज सखे! भवत्किंकरीः स्म नो,
जलरुहाननं चारु दर्शय।।6।।

अर्थात, व्रजजनों के सम्पूर्ण दुःखों का हनन करने वाले हे वीर! आपकी मन्द-मन्द मुस्कान ही प्रेमीजनों के मान-मर्दन के लिये पर्याप्त है। हे सखे! हम तो आपकी दासी हैं, आप भी हमारा भजन करें, हमसे प्रेम करें; हे प्रिय! हम स्त्रियों को अपने सलोने मुख-कमल का दर्शन दें। गोपांगनाएँ औत्सुक्यातिशयात् पुनः प्रार्थना करती हैं, ‘भज सखे! भवत्किंकरीः स्म नो’ हे सखे! आप हमें भजें, स्वीकार करें अथवा हमारे सन्निकट स्थित होकर हमारे दुःखों का निराकरण करते हुए बिराजें।

भजन भी दो प्रकार का होता है; एक भक्तकर्तुक भगवद्-भजन, दूसरा भगवत्कर्तृक भक्त-भजन। भजनीय के यथायोग्य ही भजन भी होता है। निर्गुण, निराकार, परात्पर, परब्रह्म, परमेश्वर, सगुण, निराकार परब्रह्म परमेश्वर तथा सगुण साकार सच्चिदानन्दघन भगवान के भजन की शैली भी भिन्न-भिन्न है। यदा-कदा भगवान् ही भक्त को भजने लगते हैं। ‘देवो यथादिपुरुषो भजते मुमुक्षून्।’ [1] आदिपुरुष भगवान् नारायण मुमुक्षुओं को भजते हैं। भक्त के इष्ट को पूर्ण करना ही भगवत्-कृत भक्त-भजन है। ‘भज’ धातु का अर्थ है सेवन। सामान्यतः यही कहा जाता है कि औषध का सेवन करो। औषध का ग्रहण ही औषध का सेवन करना है। इसी तरह, भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र द्वारा नित्य निकुंजेश्वरी, रासेश्वरी, राधारानी तथा अनन्त सौन्दर्य माधुर्य-परिपूर्ण श्री व्रजसीमन्तिनी गोपांगनाओं का आत्मीयत्वेन स्वीकार किया जाना ही भगवत्-कर्तृक भक्त-भजन है। भोक्ता द्वारा स्वीकृत होकर भी भोग्य साथक होता है; भोक्ता द्वारा अपरिगृहीत भोग्य निरर्थक है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद्भा. 10। 29। 31

संबंधित लेख

गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः