गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 9तव कथामृतं तप्त जीवनं। अर्थात, हे प्रभो! तुम्हारी लीला-कथा श्रवण मात्र से ही मंगल कारिणी तथा परम शोभा एवं षडैश्वर्य युक्त और विस्तृत है; संतप्त आतुर जनों के लिए अमृत स्वरूप है; वह सब पाप-तापों का नाश करती है तथा कवियों द्वारा प्रशंसित परमादृत है। जो तुम्हारी इस लीला कथा का गान करते हैं वस्तुतः वे ही सर्वोपरी महान दानी हैं।
‘तप्त जीवनम’ हे श्याम-सुन्दर आपकी कथा संतप्त प्राणी के लिए अमृत है। ‘तप्तानामस्माकमपि तदेव जीवनम्’ आपके विरह-जन्य तीव्र ताप से संत्रस्त होते हुए भी हम इस कथामृत के कारण ही जीवित हैं। विरह-विवश हम व्रजाङनाएँ परस्पर आपकी चर्चा करने लगती हैं फलतः मरण से भी कोटि गुनाधिक दारुण ताप को सहते हुए हम मर नहीं पातीं। ‘कल्मषापहम’ श्रीधर स्वामी लिखित हैं-- ‘काम-कर्म-निरसनं’ भगवत कथामृत विविध प्रकार के काम एवं शुभाशुभ-कर्म का निरसन करने वाला है। तात्पर्य कि भगवत्-स्वरूप- साक्षात्कार से काम एवं कर्म दोनों का ही समूल उन्मूल हो पाता है। ‘ज्ञानाग्निः सर्व कर्माणि भस्मसात् कुरुते तथा।’[1] भिद्यते हृदयग्रंथिश्छिद्यन्ते सर्व-संशयाः।।[2] |