गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 292

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 9

तव कथामृतं तप्त जीवनं।
कविभिरीडितं कल्मषापहम।।
श्रवणमंगलं श्रीमदाततं।
भुवि गुणन्ति ते भूरिदा जनाः।।9।।

अर्थात, हे प्रभो! तुम्हारी लीला-कथा श्रवण मात्र से ही मंगल कारिणी तथा परम शोभा एवं षडैश्वर्य युक्त और विस्तृत है; संतप्त आतुर जनों के लिए अमृत स्वरूप है; वह सब पाप-तापों का नाश करती है तथा कवियों द्वारा प्रशंसित परमादृत है। जो तुम्हारी इस लीला कथा का गान करते हैं वस्तुतः वे ही सर्वोपरी महान दानी हैं। ‘तप्त जीवनम’ हे श्याम-सुन्दर आपकी कथा संतप्त प्राणी के लिए अमृत है। ‘तप्तानामस्माकमपि तदेव जीवनम्’ आपके विरह-जन्य तीव्र ताप से संत्रस्त होते हुए भी हम इस कथामृत के कारण ही जीवित हैं। विरह-विवश हम व्रजाङनाएँ परस्पर आपकी चर्चा करने लगती हैं फलतः मरण से भी कोटि गुनाधिक दारुण ताप को सहते हुए हम मर नहीं पातीं।
हे श्याम-सुन्दर! आपकी कथा त्रिविध-ताप का शमन करने वाली है। ‘तप्तान् जीवयति इति तप्त जीवनं’ आपकी कथा का संसार-ताप से संत्रस्त प्राणी को जीवन देता है। संसार में दो प्रकार के अमृत हैं; एक समुद्र-मन्थन से प्राप्त हुआ है और दूसरा आपका कथामृत। समुद्र मन्थन से प्राप्त अमृत से देवगण अमर तो हो गए तथापि न ईर्ष्यादि दोषों से निवृत्त हो सके, न शान्ति-लाभ ही कर पाए और न ही मोक्ष प्राप्त कर सके। इस अमृत-घट को पाने की इच्छा से ही देवसुर-संग्रम हुआ। आपकी कथा-सुधा संतप्त प्राणी के ईर्ष्यादि दोषों का शमन करते हुए आपको शान्ति एवं मोक्ष दोनों ही प्रदान करती है। यही कारण है कि स्वर्गवासी देवगण भी आपके कथामृत-पान की लालसा से भारतवर्ण में उत्पन्न होने के लिए आतुर रहते हैं।

‘कल्मषापहम’ श्रीधर स्वामी लिखित हैं-- ‘काम-कर्म-निरसनं’ भगवत कथामृत विविध प्रकार के काम एवं शुभाशुभ-कर्म का निरसन करने वाला है। तात्पर्य कि भगवत्-स्वरूप- साक्षात्कार से काम एवं कर्म दोनों का ही समूल उन्मूल हो पाता है। ‘ज्ञानाग्निः सर्व कर्माणि भस्मसात् कुरुते तथा।’[1] भिद्यते हृदयग्रंथिश्छिद्यन्ते सर्व-संशयाः।।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीम0 भा0 गी0 4/37
  2. मुण्डको0 2/2/8

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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