गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 439

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 16

भगवान उपमन्यु भी अनन्य वैष्णव थे। उनकी अनन्यता का प्रमाण यही है कि स्वयं श्रीकृष्ण परमात्मा ने उनसे मंत्र-दीक्षा ली। कथा है; श्रीकृष्ण-पत्नी जाम्बवती ने भगवान् से पुत्र हेतु इच्छा प्रकट की; श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, यदि पुत्र की इच्छा है तो भगवान् शंकर को प्रसन्न करना होगा।,

‘इच्छित फल बिनु सिव अवराधे। लहिअ न कोटि जोग जप साधे।।[1]

अत; श्रीकृष्ण अपनी पत्नी जाम्बवती के साथ तपस्या हेतु कैलास गए; वहाँ शिवजी के अनन्य भक्त महर्षि उपमन्यु से मंत्र-दीक्षा ली। महर्षि उपमन्यु-कृत ‘शिव-स्तोत्र’

‘जय शंकर। पार्वतीपते मृड शम्भो शशिखण्डमण्डन।
मदनान्तक भक्तवत्सल प्रियकैलास दयासुधाम्बुधे।

बहुत प्रसिद्ध है। गो-दुग्ध की यथेष्ट प्राप्ति इस स्तोत्र के पाठ का माहात्म्य कहा गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने गुरु सांदीपनि महर्षि से चौंसठ दिनों में चौंसठ विद्याएँ सीखीं; भगवान् राघवेन्द्र रामचन्द्र ने महर्षि वशिष्ठ से दीक्षा ली। जन्म-जन्मान्तरों, कल्प-कल्पान्तरों, युग-युगान्तरोंपर्यन्त की गई अनन्य भक्ति का ही फल है कि ये महत् महर्षिजन स्वयं भगवान् के श्रीमुख से ‘गुरुदेव’ जैसे सम्बोधन पाए और शिष्यभावेन भगवान् ने भी उनके-चरण-स्पर्श किये। गुरु-भावना से महर्षियों ने आशीर्वाद दिया। गुरु सांदीपनिजी ने आशीर्वाद दिया,

‘छन्दांस्ययातयामानि भवन्त्विह परत्र च।।’ [2]

अर्थात, हे कृष्ण! तुमने जो छंद, जो वेद मुझपे पढ़े हैं वे तुम्हारे लिए-अयात-याम रहे; तात्पर्य कि नित्य ताजे रहें; कभी भी निर्वीर्य न हों। ‘यातायाम’ प्रयोग बासी भात के लिए रूढ़ हो गया है, इसका प्रयोग निर्वीर्य, गतरस, पूर्ति, पर्युषित वस्तु में होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मानस’ 1/69/8
  2. श्री०भा० 10/45/48

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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