गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 16भगवान उपमन्यु भी अनन्य वैष्णव थे। उनकी अनन्यता का प्रमाण यही है कि स्वयं श्रीकृष्ण परमात्मा ने उनसे मंत्र-दीक्षा ली। कथा है; श्रीकृष्ण-पत्नी जाम्बवती ने भगवान् से पुत्र हेतु इच्छा प्रकट की; श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, यदि पुत्र की इच्छा है तो भगवान् शंकर को प्रसन्न करना होगा।, अत; श्रीकृष्ण अपनी पत्नी जाम्बवती के साथ तपस्या हेतु कैलास गए; वहाँ शिवजी के अनन्य भक्त महर्षि उपमन्यु से मंत्र-दीक्षा ली। महर्षि उपमन्यु-कृत ‘शिव-स्तोत्र’ ‘जय शंकर। पार्वतीपते मृड शम्भो शशिखण्डमण्डन। बहुत प्रसिद्ध है। गो-दुग्ध की यथेष्ट प्राप्ति इस स्तोत्र के पाठ का माहात्म्य कहा गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने गुरु सांदीपनि महर्षि से चौंसठ दिनों में चौंसठ विद्याएँ सीखीं; भगवान् राघवेन्द्र रामचन्द्र ने महर्षि वशिष्ठ से दीक्षा ली। जन्म-जन्मान्तरों, कल्प-कल्पान्तरों, युग-युगान्तरोंपर्यन्त की गई अनन्य भक्ति का ही फल है कि ये महत् महर्षिजन स्वयं भगवान् के श्रीमुख से ‘गुरुदेव’ जैसे सम्बोधन पाए और शिष्यभावेन भगवान् ने भी उनके-चरण-स्पर्श किये। गुरु-भावना से महर्षियों ने आशीर्वाद दिया। गुरु सांदीपनिजी ने आशीर्वाद दिया, अर्थात, हे कृष्ण! तुमने जो छंद, जो वेद मुझपे पढ़े हैं वे तुम्हारे लिए-अयात-याम रहे; तात्पर्य कि नित्य ताजे रहें; कभी भी निर्वीर्य न हों। ‘यातायाम’ प्रयोग बासी भात के लिए रूढ़ हो गया है, इसका प्रयोग निर्वीर्य, गतरस, पूर्ति, पर्युषित वस्तु में होता है। |