गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 354

Prev.png

गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 12

“दुस्सहप्रेष्ठविरहतीव्रतापक्षुताशुभाः।
ध्यानप्राप्ताच्युताश्लेषनिर्वृत्या क्षीणमंगलाः।”[1]

अर्थात विप्रयोग-जन्य दुस्सह तीव्र-ताप से प्रेरित भगवान अच्युत के मानसी आश्लेष से प्रादुर्भूत आनन्द-सिन्धु के अद्भुत उद्रेक से अनन्तानन्त ब्रह्माण्ड के अनन्तानन्तप्राणियों के सम्मिलित पुण्य-पुज्ज भी प्रकम्पित हो जाते हैं, इस सम्मिलित पुण्य-पुज्ज से प्राप्त होने वाला अनन्त सुख भी भगवान अच्युत के मानसी आश्लेषजन्य आनन्द-सिन्धु का विन्दुमात्र है।

भक्त-शिरोमणि ध्रुवजी कहते हैं-

“या निवृंतिस्तनुभृतां तव पादपद्म-
ध्यानाद्भवज्जनकथाश्रवणेन वा स्यात्।
सा ब्रह्मणि स्वमहिमन्यपि नाथ मा भू-
त्ंकित्वन्तकासिलुलितात्पततां विमामानात्।।”[2]

अर्थात, हे नाथ! आपके चरण पंकज के ध्यान से भक्तों को जो आनन्द मिलता है वह तो साक्षात ब्रह्म-पद में भी नहीं मिल पाता। ‘ध्रुवजी की यह उक्ति सापेक्ष है, इसका तात्पर्य है- ‘अव्यक्ताहि गतिर्दुःख देहवद्भिरवाप्यते’[3] अर्थात, देहाभिमान शून्य ही ब्रह्म-सम्मिलन का अनन्त आनन्द अनुभव कर सकता है; जो देहाभिमान, देहाध्ग्रास शून्य नहीं हुआ वह उस आनन्दानुभूति से रिक्त ही रह जाता है। यथार्थ में ब्रह्मस्वरूप होते हुए भी जीव शूकर-कूकर-कीट-पतंग-पशु-पक्षी-देवता-दानव आदि विभिन्न योनियों में, अनेकानर्थ-परिप्लुत भवाटवी में भटकता हुआ ब्रह्मानन्द से अपरिचित एवं संसार-ताप से संत्रस्त ही रहता है।

अस्तु भक्त ध्रुव कहते हैं- हे नाथ, आपके चरणारविन्द के ध्यान तथा आपके भक्तों की कथाश्रवण से भी जो आनन्द प्राप्त होता है वह स्वप्रकाश में भी नहीं है। काल की तलवार की तीक्ष्ण धार से छिन्न-भिन्न हो विमानों से नीचे गिरने वाले देवता तो उस मुख का अनुभव ही कैसे कर सकते हैं?

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री0 भा0, 10/29/10
  2. श्रीमद् भा0, 4/9/10
  3. श्री म0 गी0, 12। 5

संबंधित लेख

गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः