गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 283

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 8

मीमांसक-जनों के मतानुसार विधि-शेषत्वेन श्रुतियों में अर्थवाद वचन, उपासना विधि एवं विधि के अंगोपांग रूप का ही वर्णन है। सम्यक् कर्मकाण्ड के लिए ही सम्पूर्ण विधि का सांगोपांग वर्णन अनिवार्यतः अपेक्षित है। देवता एवं द्रव्य ही कर्मकाण्ड के आधार हैं अतः कर्मकाण्ड में ही वेदान्त सर्वथा गतार्थ हैं। वेदान्त का स्वप्राधान्येन परात्पर परब्रह्म परमात्मा में कोई तात्पर्य नहीं हैं। वेदान्त तो कर्म-विधि शेष कर्ता का ही प्रतिपादन कर उपक्षीण हैं; देवता-स्वरूप का प्रतिपादन करने में ही वेदान्त की सार्धकता है; वेदान्त के द्वारा कर्म-शेष-भूत देवता का ही प्रतिपादन किया जाता है; जो विविध कर्कश तर्क मीमांसकों द्वारा उपस्थित किए जाते हैं। उनके अपनोदन के लिए आप लीला-विग्रह धारण करें। परात्पर परमात्मा के लीला विग्रह सर्वेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण परमानन्द कन्द ने ही ‘गीता’ द्वारा उन कर्कश तर्कों का अपनोदन किया और वेदान्त तात्पर्य को सुस्पष्टतः व्यक्त किया।

‘वेदाः श्रीकृष्ण वाक्यानिः’ भगवान् श्रीकृष्ण के वाक्य ही वेद हैं। वेद परम प्रमाण है, धर्म एवं ब्रह्म-स्वरूप निर्णय में वेदों का अनपेक्ष प्रामाण्य है। श्रीमद्-भगद्गीता, बारदायण-सूत्र, ब्रह्म-सूत्र आदि सम्पूर्ण ग्रन्थ वेदार्थ को ही सुव्यव-स्थापित करते हैं। सम्पूर्ण ग्रन्थों का सार, श्री व्यासजी की समाधि-भाषा, श्रीमद्भागनत्’ में परात्पर प्रभु भगवान् श्रीकृष्ण का साक्षात्कार है। देवर्षि नारद व्यास जी से कह रहे हैं ‘समाधिनानुस्मर तद्विचेष्टितम्।’ [1]अर्थात् समाधि के द्वारा सर्वेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण की विभिन्न चेष्टाओं का साक्षात्कार उनको लिखो। भगवान् व्यास ने समाधि अवस्था में परात्पर प्रभु के लीला-विग्रह भगवान् श्रीकृष्ण की अनेकानेक लीलाएँ एवं लीला-परिकरों के हसित, भाषित, इंतित, चेष्टित, दृष्ट त्याग आदि सम्पूर्ण व्यापारों का तथा जीव, भक्ति, मुक्ति के स्वरूप का अपरोक्षतः साक्षात्कार कर उनको तद्वत् ‘श्रीमद्भागवत’ में उतार दिया; अतः ‘श्रीमद्भागवत्’ प्रमाण चतुष्टय के अन्तर्गत मान्य है। एतावता, गोपाङनोपलक्षित श्रुतियाँ प्रार्थना करती हैं, हे प्रभो! आप लीला विग्रह धारण कर, प्रत्यक्ष होकर अपनी ‘मधुरया गिरा बल्गु वाक्यया’ ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ द्वारा उपनिषदर्थ का प्रतिपादन करें।

‘सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः।’
‘पार्थोवत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामुतं महत्।’

अर्थात उपनिषद रूप गायों के दूध को दूहने वाला गोपाल नन्दन ही आभीर नन्दन है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री0 भा0 1/5/13

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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