गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 8'वेदलक्षणा गाः पालयन्ति इति गोपालाः’ वेद रूप गाय को पालने वाला ही गोपाल है। व्रज रूप गोष्ठ में उपनिषद रूप गोओं का नियन्त्रण करने वाला, गौओं को चराने वाला, पालन -कर्ता ही गोपाल है। ‘गोपालः स एव-नन्दन, नन्दयति नन्दनः; सम्पूर्ण विश्वं नन्दयति’ अपने आनन्द सुधा-सिन्धु के एक कण मात्र से जो सम्पूर्ण विश्व को आनन्द प्रदान करता है वही नन्दन है। ‘गावश्च कृष्ण मुखनिर्गत वेणुगीत पीयूषमुत्तभितकर्णपुटैः पिबन्तयः। अर्थात, भगवान श्रीकृष्णचन्द्र ने अपने मुखचन्द्र पर वेणु को धारण कर उसके छिद्रों को अपने अधरामृत से परिपूरित किया। यह भगवताधरामृत ही वेणुगीत-पीयूष रूप से व्रजधाम में अनवरत रूपेण प्रवाहित हुआ; व्रजधाम की गायों ने अपने उछ्वसित कर्णपुटों से इसे पान किया। इस अधरामृत को पान कर गायें इत रागत-विस्मृत हो अपने शवकों को दुग्ध-पान कराना भी भूल गई; वे शावक-गण भी मुँह में पहुँचे हुए दुग्ध-कवल को गले में उतार लेना भूल गये और वह दुग्ध भूमि पर गिरने लगा; अतः वृन्दावन-धाम की भूमि श्वेत-द्वीप तुल्य शोभायमान हुई। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीम0 भा0 10/21/13