गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 219

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

ग्यारहवाँ अध्याय

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तत: स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जय: ।
प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत ॥14॥

भगवान के विश्वरूप को देखकर वे अर्जुन बहुत चकित हुए और आश्चर्य के कारण उनका शरीर रोमांचित हो गया। वे हाथ जोड़कर विश्वरूप देव को मस्तक से प्रणाम करके बोले।

अर्जुन उवाच
पश्चामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसंघान् ।
ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थ-मृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान् ॥15॥

अर्जुन बोले- हे देव! मैं आपके शरीर में सम्पूर्ण देवताओं को तथा प्राणियों के विशेष-विशेष समुदायों को और कमलासन पर बैठे हुए ब्रह्मा जी को, शंकर जी को, सम्पूर्ण ऋषियों को और दिव्य सर्पों को देख रहा हूँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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