विषय सूची
गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
सत्रहवाँ अध्याय
अर्जुन उवाच- व्याख्या- दैवी सम्पत्ति वाले मनुष्यों के भाव, आचरण और विचार ‘सात्त्विक’ होते हैं और आसुरी सम्पत्ति वाले मनुष्यों के भाव, आचरण और विचार ‘राजस-तामस’ होते हैं। भाव, आचरण और विचार के अनुसार ही मनुष्य की निष्ठा (स्थिति) होती है। श्रीभगवानुवाच व्याख्या- यद्यपि अर्जुन ने निष्ठा को जानने के लिये प्रश्न किया था, तथापि भगवान उसका उत्तर श्रद्धा को लेकर देते हैं; क्योंकि श्रद्धा के अनुसार ही निष्ठा होती है। शास्त्रविधि को न जानने पर भी प्रत्येक मनुष्य में स्वभाव से उत्पन्न होने वाली स्वतःसिद्ध श्रद्धा तो रहती है। इसलिये भगवान उस श्रद्धा के भेद बताते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज