गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 213

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

ग्यारहवाँ अध्याय

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मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसञ्ज्ञितम् ।
यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ॥1॥

अर्जुन बोले- केवल मुझ पर कृपा करने के लिये आपने जो परमगोपनीय अध्यात्म-विषयक वचन कहे, उससे मेरा यह मोह नष्ट हो गया है।

भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया ।
त्वत्त: कमलपत्राक्ष माहात्मयमपि चाव्ययम् ॥2॥

क्योंकि हे कमलनयन! सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति तथा विनाश मैंने विस्तारपूर्वक आप से ही सुने हैं और आपका अविनाशी माहात्म्य भी सुना है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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