गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 173

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

नवाँ अध्याय

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इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे ।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ॥1॥

श्रीभगवान बोले- यह अत्यन्त गोपनीय विज्ञानसहित ज्ञान दोषदृष्टि-रहित तेरे लिये तो मैं फिर अच्छी तरह से कहूँगा, जिसको जान कर तू अशुभ से अर्थात जन्म-मरण रूप संसार से मुक्त हो जायगा।

व्याख्या- कर्मयोग (निष्काम भाव) ‘गुह्य’ हैं, ज्ञानयोग (आत्मज्ञान) ‘गुह्यतर’ है और भक्तियोग (परमात्मज्ञान) ‘गुह्यतम’ है।

अपने स्वरूप को जानना ‘ज्ञान’ है और समग्र भगवान को जानना ‘विज्ञान’ है। समग्र सगुण ही हो सकता है; क्योंकि निर्गुण के अन्तर्गत तो सगुण नहीं आ सकता, पर सगुण के अन्तर्गत निर्गुण भी आ जाता है।

सातवें अध्याय से भगवान विज्ञान सहित ज्ञान का वर्णन कर रहे थे, पर बीच में अर्जुन के द्वारा सात प्रश्न कर दिये जाने से भगवान ने आठवें अध्याय में उनका विस्तार से उत्तर दिया। अब भगवान अपनी ओर से पुनः उस विज्ञान सहित ज्ञान का वर्णन आरम्भ करते हैं।

राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् ।
प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् ॥2॥
 
यह (विज्ञानसहित ज्ञान अर्थात समग्ररूप) सम्पूर्ण विद्याओं का राजा और सम्पूर्ण गोपनीयों का राजा है। यह अति पवित्र तथा अति श्रेष्ठ है और इसका फल भी प्रत्यक्ष है। यह धर्ममय है, अविनाशी है और करने में बहुत सुगम है अर्थात! इसको प्राप्त करना बहुत सुगम है।

व्याख्या- यह विज्ञान सहित ज्ञान करने में बहुत सुगम है; क्योंकि ‘सब कुछ परमात्मा ही हैं’- इसे स्वीकार मात्र करना है। इसमें कोई परिश्रम अथवा अभ्यास नहीं है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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