गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
नवाँ अध्याय
इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे । व्याख्या- कर्मयोग (निष्काम भाव) ‘गुह्य’ हैं, ज्ञानयोग (आत्मज्ञान) ‘गुह्यतर’ है और भक्तियोग (परमात्मज्ञान) ‘गुह्यतम’ है। अपने स्वरूप को जानना ‘ज्ञान’ है और समग्र भगवान को जानना ‘विज्ञान’ है। समग्र सगुण ही हो सकता है; क्योंकि निर्गुण के अन्तर्गत तो सगुण नहीं आ सकता, पर सगुण के अन्तर्गत निर्गुण भी आ जाता है। सातवें अध्याय से भगवान विज्ञान सहित ज्ञान का वर्णन कर रहे थे, पर बीच में अर्जुन के द्वारा सात प्रश्न कर दिये जाने से भगवान ने आठवें अध्याय में उनका विस्तार से उत्तर दिया। अब भगवान अपनी ओर से पुनः उस विज्ञान सहित ज्ञान का वर्णन आरम्भ करते हैं। राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् । व्याख्या- यह विज्ञान सहित ज्ञान करने में बहुत सुगम है; क्योंकि ‘सब कुछ परमात्मा ही हैं’- इसे स्वीकार मात्र करना है। इसमें कोई परिश्रम अथवा अभ्यास नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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