गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 158

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

आठवाँ अध्याय

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किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम् ।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ॥1॥

अधियज्ञ: कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन ।
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभि: ॥2॥

अर्जुन बोले- हे पुरुषोत्तम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत किसको कहा गया है? और अधिदैव किसको कहा जाता है? यहाँ अधियज्ञ कौन है? और वह इस देह में कैसे है? हे मधुसूदन! वशीभूत अन्तःकरण वाले मनुष्यों के द्वारा अन्तकाल में आप कैसे जानने में आते हैं?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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