गीता-प्रबंध -श्री अरविन्द भाग-2
खंड-2 : परम रहस्य 22.परम रहस्य
सबसे महान योगमार्ग है-अपनी प्रकृति की सब कठिनाइयों और परेशानियों से छुटकारा पाने के लिये संपूर्ण प्रकृति के इन अंतर्वासी ईश्वर की शरण लेना अपनी संपूर्ण ज्ञान संकल्प और कर्म के साथ सर्वभावेन, अपनी सचेतन सत्ता और यंत्रात्मक प्रकृति के सभी भावों के साथ उन्हीं अंतर्वासी ईश्वर की ओर मुड़ना। और जब हम सदा-सर्वदा तथा पूर्ण रूप से ऐसा कर सकेंगे तब भागवत ज्योति प्रीति और शक्ति हमें अपने अधिकार में कर लेगीं, हमारी सत्ता और हमारे करणों दोनों को परिपूरित कर देंगी और हमारे अंतःपुरुष तथा जीवन को घेरने वाले समस्त संदेहों कठिनाइयों द्विविधओं और विपदाओं में से हमें सुरक्षित ले चलेंगी, हमें परा शांति और हमारे अमृत एवं शाश्वत पद की आध्यात्मिक स्वंत्रता की ओर ले जायेगी, परां शांतिम्, स्थानं शाश्वतम्। कारण, समस्त धर्मो का और अपने योग के गहनतम सार का प्रतिपादन करने के बाद कि आध्यात्मिक ज्ञान के रूपांतरकारी प्रकाश के द्वारा मानव-मन के समक्ष प्रकाशित सभी प्राथमिक रहस्यों के परे, गुह्यात यह एक और भी गभीर एवं गुह्यतरम, सत्य है, गीता एकदम ही यह कहती है कि अभी भी एक परम वचन है जो उसे कहना है और अभी भी एक सर्वाधिक गुह्य सत्य है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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