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हमारे सभी प्रभुत्व उनकी कार्यरत शक्ति की प्रतिच्छाया हैं, हमारा सर्वश्रेष्ठ ज्ञान उनके ज्ञान का एक आंशिक आलोक है, हमारी आत्मा का सर्वोच्च एवं अत्यंत शक्तिशाली संकल्प इस सर्वभूतस्थ आत्मा, विश्व के अधीश्वर और परमात्मा के संकल्प का एक प्रलंबित अंश और प्रतिनिधि है। प्राणिमात्र के हृदय में अवस्थित ईश्वर ही हमें हमारी अज्ञानावस्था के समस्त आंतर और बाह्म कर्म में निम्न प्रकृति की इस माया के पहिये पर यंत्रारूढ़ की भाँति घुमाते आ रहे हैं। और चाहे हमारा जीवन अज्ञान में तमसाच्छन्न हो या ज्ञान में प्रकाशमान वह हमारे अंदर तथा जगत के अंदर अवस्थित उन [[ईश्वर]] के लिये ही है। इस ज्ञान और इस सत्य में सचेतन तथा संपूर्ण रूप से निवास करने का अर्थ है अहं से मुक्त होना तथा माया के घेरे को तोड़कर उससे बाहर निकलना। अन्य सब उच्चतम धर्म इस धर्म के लिये एक तैयारी मात्र है, और समस्त योग केवल एक साधन है जिसके द्वारा हम अपनी सत्ता के अधीश्वर और परम पुरुष एवं आत्मा के साथ पहने किसी-न-किसी प्रकार का मिलन और अंत में पूर्ण ज्योति प्राप्त होने पर सर्वागीण मिलन लाभ कर सकते हैं। | हमारे सभी प्रभुत्व उनकी कार्यरत शक्ति की प्रतिच्छाया हैं, हमारा सर्वश्रेष्ठ ज्ञान उनके ज्ञान का एक आंशिक आलोक है, हमारी आत्मा का सर्वोच्च एवं अत्यंत शक्तिशाली संकल्प इस सर्वभूतस्थ आत्मा, विश्व के अधीश्वर और परमात्मा के संकल्प का एक प्रलंबित अंश और प्रतिनिधि है। प्राणिमात्र के हृदय में अवस्थित ईश्वर ही हमें हमारी अज्ञानावस्था के समस्त आंतर और बाह्म कर्म में निम्न प्रकृति की इस माया के पहिये पर यंत्रारूढ़ की भाँति घुमाते आ रहे हैं। और चाहे हमारा जीवन अज्ञान में तमसाच्छन्न हो या ज्ञान में प्रकाशमान वह हमारे अंदर तथा जगत के अंदर अवस्थित उन [[ईश्वर]] के लिये ही है। इस ज्ञान और इस सत्य में सचेतन तथा संपूर्ण रूप से निवास करने का अर्थ है अहं से मुक्त होना तथा माया के घेरे को तोड़कर उससे बाहर निकलना। अन्य सब उच्चतम धर्म इस धर्म के लिये एक तैयारी मात्र है, और समस्त योग केवल एक साधन है जिसके द्वारा हम अपनी सत्ता के अधीश्वर और परम पुरुष एवं आत्मा के साथ पहने किसी-न-किसी प्रकार का मिलन और अंत में पूर्ण ज्योति प्राप्त होने पर सर्वागीण मिलन लाभ कर सकते हैं। | ||
− | सबसे महान योगमार्ग है-अपनी प्रकृति की सब कठिनाइयों और परेशानियों से छुटकारा पाने के लिये संपूर्ण प्रकृति के इन अंतर्वासी ईश्वर की शरण लेना अपनी संपूर्ण ज्ञान संकल्प और कर्म के साथ सर्वभावेन, अपनी सचेतन सत्ता और यंत्रात्मक प्रकृति के सभी भावों के साथ | + | सबसे महान योगमार्ग है-अपनी प्रकृति की सब कठिनाइयों और परेशानियों से छुटकारा पाने के लिये संपूर्ण प्रकृति के इन अंतर्वासी ईश्वर की शरण लेना अपनी संपूर्ण ज्ञान संकल्प और कर्म के साथ सर्वभावेन, अपनी सचेतन सत्ता और यंत्रात्मक प्रकृति के सभी भावों के साथ उन्हीं अंतर्वासी ईश्वर की ओर मुड़ना। और जब हम सदा-सर्वदा तथा पूर्ण रूप से ऐसा कर सकेंगे तब भागवत ज्योति प्रीति और शक्ति हमें अपने अधिकार में कर लेगीं, हमारी सत्ता और हमारे करणों दोनों को परिपूरित कर देंगी और हमारे अंतःपुरुष तथा जीवन को घेरने वाले समस्त संदेहों कठिनाइयों द्विविधओं और विपदाओं में से हमें सुरक्षित ले चलेंगी, हमें परा शांति और हमारे अमृत एवं शाश्वत पद की आध्यात्मिक स्वंत्रता की ओर ले जायेगी, ''परां शांतिम्, स्थानं शाश्वतम्।'' कारण, समस्त धर्मो का और अपने योग के गहनतम सार का प्रतिपादन करने के बाद कि आध्यात्मिक ज्ञान के रूपांतरकारी प्रकाश के द्वारा मानव-मन के समक्ष प्रकाशित सभी प्राथमिक रहस्यों के परे, ''गुह्यात'' यह एक और भी गभीर एवं ''गुह्यतरम'', सत्य है, [[गीता]] एकदम ही यह कहती है कि अभी भी एक परम वचन है जो उसे कहना है और अभी भी एक सर्वाधिक गुह्य सत्य है। |
| style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|link=गीता प्रबंध -अरविन्द पृ. 551]] | | style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|link=गीता प्रबंध -अरविन्द पृ. 551]] | ||
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01:03, 28 अप्रॅल 2018 के समय का अवतरण
गीता-प्रबंध -श्री अरविन्द भाग-2
खंड-2 : परम रहस्य 22.परम रहस्य
सबसे महान योगमार्ग है-अपनी प्रकृति की सब कठिनाइयों और परेशानियों से छुटकारा पाने के लिये संपूर्ण प्रकृति के इन अंतर्वासी ईश्वर की शरण लेना अपनी संपूर्ण ज्ञान संकल्प और कर्म के साथ सर्वभावेन, अपनी सचेतन सत्ता और यंत्रात्मक प्रकृति के सभी भावों के साथ उन्हीं अंतर्वासी ईश्वर की ओर मुड़ना। और जब हम सदा-सर्वदा तथा पूर्ण रूप से ऐसा कर सकेंगे तब भागवत ज्योति प्रीति और शक्ति हमें अपने अधिकार में कर लेगीं, हमारी सत्ता और हमारे करणों दोनों को परिपूरित कर देंगी और हमारे अंतःपुरुष तथा जीवन को घेरने वाले समस्त संदेहों कठिनाइयों द्विविधओं और विपदाओं में से हमें सुरक्षित ले चलेंगी, हमें परा शांति और हमारे अमृत एवं शाश्वत पद की आध्यात्मिक स्वंत्रता की ओर ले जायेगी, परां शांतिम्, स्थानं शाश्वतम्। कारण, समस्त धर्मो का और अपने योग के गहनतम सार का प्रतिपादन करने के बाद कि आध्यात्मिक ज्ञान के रूपांतरकारी प्रकाश के द्वारा मानव-मन के समक्ष प्रकाशित सभी प्राथमिक रहस्यों के परे, गुह्यात यह एक और भी गभीर एवं गुह्यतरम, सत्य है, गीता एकदम ही यह कहती है कि अभी भी एक परम वचन है जो उसे कहना है और अभी भी एक सर्वाधिक गुह्य सत्य है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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