श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
सतरहवाँ अध्याय
अथ एषां ‘सत’ शब्दान्वयप्रकार वक्तुं लोके सच्छब्दस्य व्युत्पत्ति प्रकारम् आह-
अब इनके साथ ‘सत्’ शब्द के सम्बन्ध का प्रकार बतलाने के लिये संसार में सत् शब्द की व्युत्पत्ति का प्रकार बताते हैं-
सद्भावे साधुभावे च सदित्येतत्प्रयुज्यते।
प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्द: पार्थ युज्यते॥26॥
अर्जुन! सद्भाव और साधुभाव में ‘सत्’ इस नाम का प्रयोग किया जाता है। तथा शुभ कर्म के लिये भी सत् शब्द का उपयोग होता है।।26।।
सद्भाव विद्यमानतायां साधुभावे कल्याणभावे च सर्ववस्तुषु सद् इति एतत् पदं प्रयुज्यते लोकवेदयोः। तथा केनचित् पुरुषेण अनुष्ठिते लौकिके प्रशस्ते कल्याणे कर्माणि सत्कर्म इदम् सच्छब्दो युज्यते प्रयुज्यते इत्यर्थः।।26।।
सत्ता के भाव में- विद्यमानता में और साधुभाव में-कल्याणमय भाव में सब वस्तुओं के साथ सत् शब्द का प्रयोग लोक में और वेद में भी किया जाता है। तथा जिस किसी भी पुरुष के द्वारा किये जाने वाले लौकिक प्रशस्त-शुभ कर्म के साथ यह ‘सत्-कर्म’ है ऐसा कहकर ‘सत्’ शब्द जोड़ा जाता है, यानी ‘सत्’ शब्द का प्रयोग किया जाता है।।26।।
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