श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
दूसरा अध्याय
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् ।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदन: ॥1॥
संजय बोले- इस प्रकार करुणा से ओतप्रोत, आँसू भरे व्याकुल नेत्रों वाले तथा अत्यन्त विषादयुक्त उस अर्जुन से भगवान मधुसूदन ने यह बात कही ।। 1।।
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् ।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥2॥
श्रीभगवान बोले- अर्जुन! इस असमय में (संकट के समय) यह अनार्य पुरुषों द्वारा सेवित, परलोकविरोधी और अकीर्ति फैलाने वाला शोक तुझे कहाँ से प्राप्त हो गया ।। 2।।
क्लैव्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते ।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ॥3॥
पार्थ! तू नपुंसकता न ग्रहण कर, यह तुझे शोभा नहीं देती, परन्तप! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर तू (युद्ध के लिये) खड़ा हो जा ।। 1-3।।
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