श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 299

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
तेरहवाँ अध्याय

पूर्वस्मिन् षट्के परमप्राप्यस्य परस्य ब्रह्मणो भगवतो वासुदेवस्य प्राप्त्युपायभूतभक्तिरूपभगवदुपासनांगभूतं प्राप्तुः प्रत्यगात्मनो याथात्म्य दर्शनं ज्ञानयोगकर्मयोगलक्षणनिष्ठाद्वयसाध्यम् उक्तम्।

मध्यमे च परमप्राप्यभूतभगवत्तत्त्वयाथात्म्यतन्माहात्म्यज्ञानपूर्वकैकान्तिकभक्तियोगनिष्ठा प्रतिपादिता, अतिशयितैश्वर्यापेक्षाणाम् आत्मकैवल्यमात्रापेक्षाणां च भक्ति योगः तत्तदपेक्षितसाधनम् इति च उक्तम्।

इदानीम् उपरितनषट् के प्रकृतिपुरुषतत्संसर्गपप्रपञ्चेश्वरयाथात्म्य कर्मज्ञानभक्तिस्वरूपतदुपादानप्रकाराः च षट्कद्वयोदिता विशोध्यन्ते।

तत्र तावत्रयोदशे देहात्मनों स्वरूपम, देहयाथात्म्यशोधनम् देहवियुक्तात्म प्राप्त्युपायः, विविक्तात्मस्वरूप संशोधनम्, तथाविधस्य आत्मनः च अचित्सम्बन्धहेतुः, ततो विवेकानुसन्धानप्रकारः च उच्यते-

पहले षट्क (छः अध्यायों)-में परम प्राप्य परब्रह्म भगवान् वासुदेव की प्राप्ति की उपायभूता भक्तिरूप भगवत् उपासना का अंगरूप, जो प्राप्तिकर्ता प्रत्यगात्मा (जीवात्मा)-का यथार्थ स्वरूप ज्ञान है, जिसकी प्राप्ति ज्ञानयोग और कर्मयोग- इन दोनों निष्ठाओं से होती है, उसका वर्णन किया गया।

मध्य के षट्क (छः अध्यायों)-में परम प्राप्य भगवान् के स्वरूप का यथार्थ तत्त्व और उसके माहात्म्य-ज्ञान सहित ऐकान्तिक, आत्यन्तिक, भक्तियोग-निष्ठा का प्रतिपादन किया गया तथा यह भी कहा जा चुका कि अतिशय ऐश्वर्य की इच्छा करने वालों के एवं एकमात्र आत्मा की कैवल्यस्थिति की इच्छा करने वालों के लिये भी भक्तियोग ही उन-उनकी अपेक्षा पूर्ति का (ऐश्वर्यप्राप्ति का और कैवल्य प्राप्ति का) साधन है।

अब इस अन्तिम षट्क(छः अध्यायों)-में प्रकति और पुरुष का, उन दोनों के संसर्गरूप प्रपञ्च का, ईश्वर के यथार्थ स्वरूप का, कर्म, ज्ञान और भक्ति के स्वरूप का और उन-उनको प्राप्त करने के प्रकारों का अर्थात् पिछले दो षट्कों में (एक से लेकर बारह अध्याय तक) जिनका वर्णन किया गया है, उन सब प्रसंगों का स्पष्टीकरण किया जाता है।

उस अन्तिम षट्क में से तेरहवें अध्याय में पहले शरीर पहले शरीर और आत्मा का स्वरूप, शरीर के स्वरूप का स्पष्टीकरण शरीर के सम्बन्ध से रहित आत्मा की प्राप्ति का उपाय, प्रकृति संसर्ग से रहित आत्मा के स्वरूप का स्पष्टीकरण और वैसे आत्मा का जड के साथ सम्बन्ध होने में कारण तथा उसके अनन्तर दोनों के विवेचन का प्रकार भी बतलाते हैं-


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

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