श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 189

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
आठवाँ अध्याय

सप्तमे परस्य ब्रह्मणो वासुदेवस्य उपास्यस्य निखिलचेतनाचेतनवस्तु शेषित्वं कारणत्वम् आधारत्वं सर्व शरीरतया सर्वप्रकारत्वेन सर्वशब्द वाच्यत्वं सर्वनियन्तृत्वं सर्वैश्च कल्याणगुणगणैः एकाश्रयत्वं तस्य एव परतरत्वं च। सत्त्वरजस्तमोमयैः देहिन्द्रित्वेन भोग्यत्वेन च अवस्थितैः भावैः अनादिकालप्रवृत्तदुष्कृत प्रवाह हेतुकैः तस्य तिरोधानम्। अत्युत्कृष्ट सुकृतहेतुकभगवत्प्रपत्या च तन्निवर्तनम्, सुकृततारतम्येन च प्रपत्ति वैशेष्याद् ऐश्वर्य्याक्षरयाथात्म्यभगवत्प्राप्त्यपेक्षया उपासकभेदम्, भगवन्तं प्रेप्सोः नित्ययुक्ततया एकभक्तितया च अत्यर्थपरमपुरुषप्रियत्वेन च श्रैष्ठयं दुर्लभत्वं च प्रतिपाद्य एषां त्रयाणां ज्ञातव्योपादेयभेदांश्च प्रास्तौषीत्।

सातवें अध्याय में यह प्रतिपादन किया गया कि परब्रह्म श्रीवासुदेव ही उपास्य देव हैं, वे सम्पूर्ण जड-चेतन वस्तुओं के शेषी-स्वामी हैं, सबके कारण और आधार हैं, सब उन्हीं के शरीर हैं, इसलिये सभी उन्हीं के प्रकार भेद होने के नाते वे ही ‘सर्व’ शब्द से वाच्य हैं और सबके नियन्ता हैं, वे ही समस्त कल्याणमय गुणगणों से युक्त होने के कारण एकमात्र आश्रय हैं; वे ही सबसे परम श्रेष्ठतम हैं। अनादिकाल से बहते हुए पाप प्रवाहजनित सात्त्विक, राजस और तामस-त्रिगुणमय शरीर, इन्द्रियाँ और भोग्यवस्तु के रूप में स्थित भावों से छिपे हुए हैं। श्रेष्ठतम पुण्य के प्रभाव से होने वाली भगवच्छरणागति से उस आवरण का नाश होता है। पुण्यों की न्यूनाधिकता से शरणागति में भेद होने के कारण-‘ऐश्वर्य की प्राप्ति’ ‘आत्मा के यथार्थ स्वरूप की प्राप्ति’ और 'भगवत्प्राप्ति'- इस प्रकार प्राप्ति- विषयक अभिलाषा में भेद होते हैं और इसी कारण उपासकों के भी तीन भेद होते हैं। भगवान को प्राप्त करने की इच्छा वाला भक्त नित्ययुक्त, एक भक्तियुक्त और परमपुरुष भगवान का अत्यन्त प्रिय होने के कारण सबमें श्रेष्ठ है, अतएव दुर्लभ है। इस प्रकार उसकी श्रेष्ठता और दुर्लभता का प्रतिपादन करके फिर इन तीनों प्रकार के भक्तों के लिये जानने और प्राप्त करने योग्य वस्तुओं के भेदों का भी प्रस्तावना के रूप में वर्णन किया।

प्रतिपाद्य एषां त्रयाणां ज्ञातव्योपादेयभेदांश्च प्रास्तौषीत्। इदानीम् अष्टमे प्रस्तुतान् ज्ञातव्योपादेयभेदान् विविनक्ति-

उन प्रस्तावरूप से कहे हुए जानने और प्राप्त करने योग्य वस्तुभेदों का अब आठवें अध्याय में विवेचन करते हैं-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

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