श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 348

Prev.png

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
चौदहवाँ अध्याय

त्रयोदशे प्रकृतिपुरुषयोः अन्योन्य संसृष्टयोः स्वरूपयाथात्म्यं विज्ञाय अमानित्वादिभिः भगवद्भक्त्या अनुगृहीतैः बन्धात् मुच्यते इति उक्तम्; तत्र बन्धहेतुः पूर्वपूर्वसत्त्वादिगुणमय सुखादिसगं इति च अभिहितम् ‘कारणं गुणसंगोस्य सदसद्योनिजन्मसु।।’[1] इति।

तेरहवें अध्याय में यह कहा गया कि परस्पर संयुक्त हुए प्रकृति और पुरुष का यथार्थ स्वरूप जानकर भगवद्भक्ति के साथ अमानित्वादि गुणों के सेवन द्वारा मनुष्य बन्धन से मुक्त हो जाता है। उसी अध्याय में ‘कारणं गुणसंगोस्य सदसद्योनिजन्मसु।।’ इस श्लोक से यह भी कहा है कि पूर्व-पूर्व जन्मों में प्राप्त सत्त्वादि गुणों के कार्यरूप सुखदुःखादिका संग ही इसके बन्धन का कारण है

अथ इदानीं गुणानां बन्धहेतुता प्रकारो गुणनिवर्तनप्रकारः च उच्यते-

अब इस अध्याय में, गुण किस प्रकार बन्धन करते हैं और किस प्रकार उनको हटाया जा सकता है, यह बतलाया जाता है-


श्रीभगवानुवाच-
परं भूय: प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्।
यज्ज्ञात्वा मुनय: सर्वे परां सिद्धिमितो गता:॥1॥

श्रीभगवान् बोले-मैं ज्ञानों में उत्तम परम ज्ञान को फिर कहता हूँ, जिसको जानकर सब मुनि इस संसार से (छूटकर) परमसिद्धि को प्राप्त हो चुके हैं।।1।।


परं पूर्वोक्ताद् अन्यत् प्रकृति पुरुषान्तर्गतम् एव सत्त्वादिगुणविषयं ज्ञानं भूयः प्रवक्ष्यामि; तत् च ज्ञानं सर्वेषां प्रकृतिपुरुषविषयज्ञानानाम् उत्तमम्; यद् ज्ञानं ज्ञात्वा सर्वे मनुयः तन्मननशीलाः इतः संसारमण्डलात् परां सिद्धिं गताः परिशुद्धापत्मस्वरूपप्राप्तिरूपां सिद्धिम् अवाप्ताः।।1।।

प्रकृति और पुरुष विषयक ज्ञानों के अन्तर्गत ही सत्त्वादि गुणविषयक परम ज्ञान-जो पहले कहे हुए ज्ञान से भिन्न है, मैं तुझे फिर कहता हूँ। वह ज्ञान प्रकृति-पुरुषविषयक समस्त ज्ञानों में उत्तम है और यह ऐसा है कि जिसको जानकर उसका मनन करने वाले सब मुनि इस संसार मण्डल से (छूटकर) परम सिद्धि को प्राप्त हो गये हैं- परिशुद्ध आत्मस्वरूप की प्राप्ति रूप सिद्धि को प्राप्त हो चुके हैं।।1।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 13/21

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः