श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 270

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
ग्यारहवाँ अध्याय


अमी हि त्वां सुरसंघा विशन्ति
केचिद्भीता: प्राञ्जलयो गृणन्ति ।
स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसंघा:
स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभि: पुष्कलाभि: ॥21॥

ये देवताओं के संघ आप में ही समा रहे हैं। कितने ही भयभीत हुए हाथ जोडे़ स्तुति कर रहे हैं। महर्षियों और सिद्धों के संघ ‘कल्याण हो’ ऐसा कहकर आप के अनुरूप बड़ी-बड़ी स्तुतियों से आपका स्तवन कर रहे हैं।। 21।।

अमी सुरसंघाः उत्कृष्टाः त्वां विश्वाश्रयम् अवलोक्य हृष्टमनसः त्वत्समीपं विशन्ति। तेषु एव केचिद् अति उग्रम् अति अद्भुतं च तव आकारम् आलोक्य भीताः प्राञ्जलयः स्वज्ञानानुगुणं स्तुतिरूपाणि वाक्यानि गृणन्ति उच्चारयन्ति। अपरे महर्षिसंघाः सिद्ध संघाः च परावरतत्त्वयाथात्म्यविदः स्वस्ति इति उक्त्वा पुष्कलाभिः भगव दनुरूपाभिः स्तुतिभिः स्तुवन्ति।। 21।।

ये श्रेष्ठ देव-समुदाय विश्व के आश्रय रूप आपको देखकर हर्षितचित्त से आपके समीप आ रहे हैं। उनमें कितने ही तो अत्यन्त उग्र और अत्यन्त अद्भुत अपकी आकृति को देखकर भयभीत हुए हाथ जोड़कर अपने-अपने ज्ञान के अनुसार स्तुतिरूप वचनों का उच्चारण कर रहे हैं। दूसरे महर्षि और सिद्धों के संघ, जो भले-बुरे तत्त्व को यथार्थ समझने वाले हैं, वे ‘स्वस्ति’ (कल्याण हो) ऐसा कहकर आपके अनुरूप विस्तृत स्तोत्रों द्वारा आपकी स्तुति कर रहे हैं।। 21।।

रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या
विश्वेऽश्विनौ मरुतश्चीष्मपाश्च ।
गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसंघा
वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ॥22॥

रुद्र, आदित्य, वसु साध्य, विश्वेदेव, दोनों अश्विनीकुमार, मरुत्, ऊष्मपा (पितृगण), गन्धर्व, यक्ष, असुर और सिद्धों के समूह- ये सब के-सब विस्मित हुए आपको देख रहे हैं।। 22।।

ऊष्मपाः पितरः ‘ऊष्मभागा हि पितरः’ (यजुः01/3/10/61/3) इति श्रुतेः। एते सर्वे विस्मयम् आपन्नाः त्वां वीक्षन्ते।। 22।।

‘ऊष्मपा’ पितरों का नाम है, क्योंकि श्रुति में ‘पितर ऊष्मभागी होते हैं’ ऐसा कहा है। ये (इस श्लोक में बतलाये हुए) सब-के-सब विस्मय में भरकर आपको देख रहे हैं।। 22।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
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अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
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अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
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