श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 269

Prev.png

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
ग्यारहवाँ अध्याय

द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि
व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वा: ।
दृष्ट्वाद्भुत रूपमुग्रं तवेदं
लोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन् ॥20॥

महात्मन्! द्युलोक और पृथ्वी का यह मध्य भाग और सारी दिशाएँ एक आप से ही व्याप्त हैं। आपके इस अद्भुत उग्र रूप को देखकर तीनों लोक व्यथित हो रहे हैं।। 20।।

द्युशव्दः पृथिवीशब्दश्च उभौ उपरितनानाम् अधस्तनानां च लोकानां प्रदर्शनार्थौ; द्यावापृथिव्योः अन्तरम् अवकाशः, यस्मिन् अवकाशे सर्वे लोकाः तिष्ठन्ति, सर्वः अयम् अवकाशः दिशश्च सर्वाः त्वया एकेन व्याप्ताः।

‘द्यु’ शब्द और ‘पृथ्वी’ शब्द-ये दोनों ही ऊपर और नीचे के सब लोकों का संकेत करने के लिये हैं। द्यु और पृथ्वी के बीच का जो अवकाश है, जिस अवकाश में समस्त लोक वर्तमान हैं, ऐसा यह समस्त अवकाश और समस्त दिशाएँ एक आपसे ही परिपूर्ण हो रही हैं।

दृष्टा अद्भुतं रूपम् उग्रं तव इदम्- अनन्तायामविस्तारम् अत्यद्धुतम् अति उग्रं रूपं दृष्टा लोकत्रयं प्रव्यथितम्-युद्धदिदृक्षया आगतेषु ब्रह्मादिदेवासुरपितृगणसिद्धगन्धर्व यक्षराक्षसेषु प्रतिकूलानुकूलमध्यस्थरूपं लोकत्रयं सर्वं प्रव्यथितम्, अत्यन्तभीतम्; महात्मन् अपरिच्छेद्यमनोवृत्ते।

महात्मन्! जिसकी सीमा अथवा इयत्ता न बतायी जा सके ऐसी मनोवृत्ति-से युक्त (विशाल हृदय वाले) भगवन्! आपके इस अद्भुत उग्र रूप को देखकर-अनन्त विस्तार वाले अति अद्भुत और अत्यन्त उग्र आपके रूप को देखकर तीनों लोक अत्यन्त व्यथित हो रहे हैं। अभिप्राय यह है कि युद्ध देखने के लिये आये हुए ब्रह्मादि देवता, असुर,पितृगण, सिद्ध, गन्धर्व, यक्ष और राक्षसों में अनुकूल-प्रतिकूल और मध्यस्थरूप जो तीनों लोक हैं, वे सब-के-सब अत्यन्त व्यथित हो रहे हैं- बहुत डरे हुए हैं।

एतेषाम् अपि अर्जुनस्य इव विश्वाश्रयरूप साक्षात्कार साधनं दिव्यं चक्षुः भगवता दत्तम्। किमर्थम् इति चेत्? अर्जुनाय स्वैश्वर्यं सर्वं प्रदर्शयितुम्; अत इदम् उच्यते- ‘दृष्टाभुतं रूपमुग्रं तवेदं लोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन्’ इति ।। 20।।

इन लोगों को भी भगवान् ने अर्जुन की भाँति विश्व के आश्रयरूप अपने स्वरूप का साक्षात् करने के साधन दिव्य नेत्र प्रदान कर दिये थे। यदि कहा जाय कि किसलिये दे दिये थे; तो इसका उत्तर यह है कि अर्जुन को अपना सारा ऐश्वर्य दिखलाने के लिये दिये थे। इसीलिये यह कहा कि ‘महात्मन्! आपके इस अद्भुत उग्र रूप को देखकर तीनों लोक अत्यन्त व्यथित हो रहे हैं’ ।। 20।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः