श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 161

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
छठा अध्याय

कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति ।
अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मण: पथि ॥38॥

महाबाहो! वह ब्रह्म के मार्ग में भूला हुआ आश्रयरहित पुरुष क्या फटे हुए बादल की भाँति दोनों ओर से भ्रष्ट होकर नष्ट तो नहीं हो जाता ? ।। 38।।

उभयविभ्रष्ट अयं छिन्नाभ्रम् इव कच्चित् न नश्यति यथा मेघशकलः पूर्वस्मात् महतो मेघात् अप्राप्य मध्ये विनष्टो भवित, तथा एव कच्चित् न नश्यति, कथम् उभयविभ्रष्टता, अप्रतिष्ठो विमूढो ब्रह्मणः पथि इति, यथावस्थितं स्वर्गादिसाधनभूंत कर्म फलाभिसन्धि रहितस्य अस्य पुरुषस्य स्वफलसाधनत्वेन प्रतिष्ठा न भवति इति अप्रतिष्ठः। प्रक्रान्ते ब्रह्माणः पथि विमूढः तस्मात् पथः प्रच्युतः, अत उभय भ्रष्टतया किम् अयं नश्यति एव, उत न नश्यति।। 38।।

क्या वह फटे हुए बादल की भाँति दोनों ओर से भ्रष्ट होकर नष्ट तो नहीं हो जाता?-जैसे मेघ का छोटा टुकड़ा पहले वाले बड़े मेघ से टूटकर और दूसरे बड़े मेघ से न मिलकर बीच में ही नष्ट हो जाता है वैसे ही क्या यह भी नष्ट तो नहीं हो जाता? उसकी उभय भ्रष्टता कैसे है यह बात ‘अप्रष्ठि’ और ब्रह्ममार्ग में विमूढ’ (इन दो विशेषणों से बतलायी गयी है)। कहने का तात्पर्य यह है कि विधिपूर्वक किये हुए जो स्वर्गादि के साधनरूप कर्म हैं वे फल कामना से रहित उपर्युक्त पुरुष के लिये अपने फल के साधक रूप से प्रतिष्ठा (आश्रय) देने वाले नहीं होते, इसलिये वह ‘अप्रष्ठि’ है। और ब्रह्म प्राप्ति के मार्ग में वह जहाँ तक बढ़ जाता है, उसमें विमूढ़ हो जाने के कारण उस पथ से भ्रष्ट हो गया है, अतएव दोनों ओर से भ्रष्ट होकर यह साधक क्या नष्ट ही हो जाता है? या नहीं नष्ट होता? ।। 38।।

एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषत: ।
त्वदन्य: संशयस्यास्य छेत्ता न ह्यपपद्यते ॥39॥

श्रीकृष्ण! मेरे इस संशय को पूर्णरूप से काटने के योग्य आप ही हैं। आपके बिना इस संशय को काटने वाला दूसरा मिल ही नहीं सकता ।। 39।।

तम् एनं संशयम् अशेषतः छेत्तुम् अर्हसि स्वतः प्रत्यक्षेण युगपत् सर्व सर्वदा स्वत एव पश्यतः त्वत्तः अन्यः संशयस्य अस्य छेत्ता न हि उपपद्यते।। 39।।

ऐसे इस संशय को पूर्णरूप से काटने में आप ही समर्थ हैं। क्योंकि आप प्रत्यक्षरूप से एक ही साथ सबको सब समय अपने -आप ही देखने वाले हैं अतएव आपके अतिरिक्त अन्य कोई भी इस (मेरे) संशय को काटने वाला सम्भव नहीं है।। 39।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

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