श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 160

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
छठा अध्याय

असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मति: ।
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायत: ॥36॥

मन को वश में न करने वाले पुरुष के द्वारा (इस) योग का पाना बहुत कठिन है; परन्तु स्वाधीन मन वाले प्रयत्नशील पुरुष के द्वारा उपाय करने पर इसका पाना सम्भव है, यह मेरा मत है।। 36।।

असंयतात्मना अजितमनसा महता अपि बलेन योगो दुष्प्राप एव। उपायतः तु वश्यात्मना पूर्वोक्तेन मदाराधन रूपेण अन्तर्गतज्ञानेन कर्मणा जितमनसा यतमानेन अयम् एव समदर्शनरूपो योगः अवाप्तुं शक्यः।। 36।।

असंयतात्मा को- जिसने अपने मन को जीत नहीं लिया है ऐसे पुरुष को बहुत बड़ा बल लगाने पर भी (यह आत्मदर्शन रूप) योग प्राप्त होना अत्यन्त कठिन है; परन्तु उपाय करके मन को वश में कर लेने वाले पुरुष को यानी जिसने मेरी आराधना रूप पूर्वोक्त अन्तर्गत ज्ञान सहित कर्म के द्वारा, अपने मन को जीत लिया है ऐसे साधक को यत्न करते रहने पर यह समदर्शन रूप योग प्राप्त हो सकता है।। 36।।

अथ ‘नेहाभिक्रमनाशोअस्ति’ [1] इत्यादौ एव श्रुतं योगमाहात्मयं यथावत् श्रोतुम् अर्जुनः पृच्छति। अन्तर्गतात्मज्ञानतया योगशिरस्कतया च हि कर्मयोगस्य माहात्म्यं तत्रोदितं तच्च योगमाहात्मयम् एव-

अब ‘नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति’ इत्यादि वचन में सुने हुए योग के माहात्म्य को भलीभाँति सुनने की इच्छा से अर्जुन पूछता है; क्योंकि कर्मयोग में आत्मज्ञान का अन्तर्भाव होने के कारण तथा कर्मयोग का नाम ‘योग’ होने के कारण वहाँ जो उसका माहात्म्य कहा गया है, वह वस्तुतः (आत्मदर्शनरूप) योग का ही माहात्म्य है-

अर्जुन उवाच
अयति: श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानस: ।
अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति ॥37॥

अर्जुन बोले- श्रीकृष्ण! श्रृद्धापूर्वक योगसाधन में लगा हुआ साधक प्रयत्न की कमी के कारण योग की सिद्धि को न पाकर योग से विचलित मन वाला होकर किस गति को प्राप्त होता है? ।।37।।

श्रद्धया योगे प्रवृत्तो दृढतराभ्यास रूपयत्नवैकल्येन योगसंसिद्धिम् अप्राप्य योगात् चलितमानसः कां गतिं गच्छति।। 37।।

जो आत्मदर्शनरूप योग के (साधन में) श्रद्धापूर्वक लगा हो, परन्तु अत्यन्त दृढ अभ्यासरूप यत्न की कमी के कारण योग की पूर्ण सिद्धि को प्राप्त करने के पहले ही जिसका मन योग (साधन)- से विचलित हो गया हो, ऐसा पुरुष किस गति को प्राप्त होता है? ।।37।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गीता 2/40

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अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
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अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
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