श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
पाँचवाँ अध्याय
योऽन्त: सुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव य: ।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणां ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥24॥
जो अन्तरात्मा में सुखवाला, अन्तरात्मा में ही रमण करने वाला और अन्तरात्मा में ज्योति वाला है, वह ब्रह्मस्वरूप योगी आत्मानुभवरूप सुख को प्राप्त होता है।। 24।।
यो बाह्यविषयानुभवं सर्व विहाय अन्तःसुखः आत्मानुभवैकसुखः अन्तरारामः आत्मैकाधीनः स्वगुणैः आत्मा एव सुखवर्धको यस्य स तथोक्तः, तथा अन्तर्ज्योति: आत्मैकज्ञानो यो वर्तते, स ब्रह्मभूतो योगी ब्रह्मनिर्वाणम् आत्मानुभवसुखं प्राप्नोति।। 24।।
जो समस्त बाह्य विषयों के अनुभवों को छोड़कर अन्तः सुख वाला-एकमात्र आत्मानुभवरूप सुखवाला हो गया है, जो अन्तराराम है-एकमात्र आत्मा के ही अधीन है, आत्मा ही अपने गुणों से जिसके सुख को बढ़ाने वाला है, तथा जो अन्तर्ज्योति है- केवल आत्मा के ही ज्ञान से युक्त है, ऐसा वह ब्रह्मभूत योगी ब्रह्मनिर्वाण को-आत्मानुभवरूप सुख को प्राप्त होता है।। 24।।
लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषय: क्षीणकल्मषा: ।
छिन्नद्वैधा यतात्मान: सर्वभूतहिते रता: ॥25॥
द्वन्द्वों से छूटे हुए आत्मा में ही मन को लगाये रखने वाले, सब भूत प्राणियों के हित में लगे हुए और पापों का क्षय कर चुके हुए ऋषिगण ब्रह्मनिर्वाण को प्राप्त होते हैं।। 25।।
छिन्नद्वैधाः- शीतोष्णादिद्वन्द्वैः विमुक्ताः, यतात्मानः- आत्मनि एव नियमितमनसः, सर्वभूतहिते रताः- आत्मवत् सर्वेषां भूतानां हितेषु निरताः, ऋषयः-द्रष्टारः, आत्मावलोकनपरा ये एवम्भूताः ते क्षीणा शेषात्मप्राप्तिविरोधिकल्मषाः ब्रह्म निर्वाणं लभन्ते।। 25।।
जो छिन्नद्वैध हैं- शीतोष्णादि द्वन्द्वों से बिलकुल छूटे हुए हैं, यतात्मा हैं- आत्मा में ही मन को नियन्त्रित रखने वाले हैं, तथा सब भूतों के हित में रत हैं- अपनी ही भाँति समस्त भूतप्राणियों के हितों में लगे हैं और ऋषि हैं- आत्मसाक्षात्कार परायण प्रत्यक्ष द्रष्टा हैं- ऐसे वे (पुरुष) आत्म प्राप्ति के विरोधी समस्त पापों का पूर्णतया क्षय कर देने वाले पुरुष ब्रह्मनिर्वाण को प्राप्त करते हैं।। 25।।
उक्तगुणानां ब्रह्म अत्यन्तसुलभम् इत्याह-
इस प्रकार के गुण वालों के लिये ब्रह्म अत्यन्त सुलभ है, यह कहते हैं-
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