श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 119

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
चौथा अध्याय

अपाने जुह्वति प्राणं प्राणेऽपानं तथा परे ।
प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणा: ॥29॥
अपरे नियताहार: प्राणान्प्राणेषु जुह्वति ।
सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषा: ॥30॥

अन्य कई नियताहारी प्राणायाम-परायण पुरुष प्राण का अपान में, दूसरे अपान का प्राण में और अन्य कई प्राण-अपान की गति को रोककर प्राणों का प्राणों में हवन करते हैं। ये सभी यज्ञ को जानने वाले हैं और यज्ञों द्वारा पापों का नाश कर डालने वाले हैं।।29-30।।

अपरे कर्मयोगिनः प्राणायामेषु निष्ठां कुर्वन्ति। ते च त्रिविधाः पूरकरेचककुम्भकभेदेन। अपाने जुह्वति प्राणम् इति पूरकः, प्राणे अपानम् इति रेचकः, प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणान् प्राणेषु जुह्वति इति कुम्भकः। प्राणायामपरेषु त्रिषु अपि अनुषज्यते नियताहारा इति। द्रव्ययज्ञप्रभृति प्राणायामपर्यन्तेषु कर्मयोगभेदेषु स्वसमीहितेषु प्रवृत्ता एते सर्वे ‘सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा’ (गीता 3/10) इतिअभिहितमहायज्ञपूर्वकनित्यनैमित्तिककर्मरूपयज्ञविदः, तन्निष्ठाः, तत एव क्षपितकल्पषाः।। 29-30।।

अन्य कर्मयोगी प्राणायाम में निष्ठा करने वाले होते हैं, वे पूरक, रेचक और कुम्भक के भेद से तीन प्रकार के होते हैं। ‘अपान में प्राण का हवन करते हैं’ यह पूरक है, ‘प्राण में अपान का हवन करते हैं’ यह रेचक है और ‘प्राण-अपान की गति को रोककर प्राणों का प्राणों में हवन करते हैं, यह कुम्भक है।’ नियताहाराः’ यह पद तीनों प्रकार के ‘प्राणायामपरायण’ पुरुषों से सम्बन्ध रखता है। द्रव्ययज्ञ से लेकर प्राणायामपर्यन्त, जो अपने द्वारा किये जाने वाले कर्मयोग के भेद हैं; उनमें लगे हुए ये सभी लोग पहले ‘सहयज्ञाः प्रजाः स्रष्टा’ इस प्रकार बतलाये हुए महायज्ञसहित नित्य, नैमित्तिक कर्मरूप यज्ञ को जानने वाले हैं- उसमें निष्ठा रखने वाले हैं और इसी कारण पापों का नाश कर डालने वाले हैं।।29-30।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
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अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
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अध्याय 10 234
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