श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
चौथा अध्याय
श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति ।
शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति ॥26॥
अन्य कर्मयोगी श्रोत्रादि इन्द्रियों को संयमरूप अग्नियों में होते हैं; दूसरे शब्दादि विषयों का इन्द्रियरूपी अग्नियों में हवन करते हैं।। 26।।
अन्ये श्रोत्रादीनाम् इन्द्रियाणां संयमने प्रयतन्ते। शब्दादीन् विषयान् अन्ये योगिनः इन्द्रियाणां शब्दादि विषयप्रवणतानिवारणे प्रयतन्ते।। 26।।
अन्य कर्मयोगी श्रोत्रादि इन्द्रियों के संयम के लिये प्रयत्न किया करते हैं। अन्य योगी शब्दादि विषयों का (इन्द्रियरूपी अग्नियों में हवन करते हैं)- इन्द्रियों की शब्दादि विषयपरायणता को रोकने का प्रयत्न करते हैं।। 26।।
सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे ।
आत्म-संयम योगाग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते ॥27॥
अन्य कर्मयोगी ज्ञान से प्रज्वलित आत्मसंयमरूपी योगाग्नि में समस्त इन्द्रियों के कर्मों का और प्राणों के कर्मों का हवन करते हैं।। 27।।
अन्ये ज्ञानदीपिते मनः संयम योगाग्नौ सर्वाणि इन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि च जुह्वति-मनसा इन्द्रियप्राणानां कर्मप्रवणतानिवारणे प्रयतन्ते इत्यर्थः।। 27।।
अन्य कर्मयोगी ज्ञान से प्रदीप्त मन के संयमरूप योगाग्नि में समस्त इन्द्रियों के कर्मों का और प्राणों के कर्मों का हवन करते हैं- मन से इन्द्रियों और प्राणों की कर्मपरायणता को रोकने का प्रयत्न करते हैं।। 27।।
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