भागवत धर्म मीमांसा8. संसार-प्रवाह(22.4) निषेक-गर्भ-जन्मानि बाल्य-कौमार-यौवनम् । यहाँ मनुष्य की नौ अवस्था बतायी गयी हैं। [2] वीर्य-बिन्दु से लेकर मृत्यु तक नौ अवस्थाएँ। शेक्सपीयर ने ‘सेवन स्टेजेज़ ऑफ मैन’ (मनुष्य की सात अवस्थाएँ) लिखा है। मनुष्य नाटक कर रहा है और वह सात अवस्थाओं में प्रकट होता है। पर भागवत नौ अवस्थाएँ बता रही है। भावार्थ यही है कि बचपन से मरने तक वही शरीर नहीं रहता और मन भी वह नहीं रहता। लेकिन इतना होते हुए भी आत्मा सत्य है। परिणाम क्या होता है? कहते हैं : (22.5) प्रकृतेरेवमात्मानं अविविच्याबुधः पुमान् । प्रकृति का, मन का प्रवाह बह रहा है, लेकिन आत्मा अखण्ड कायम है। नदियों का पानी बहता ही रहता है। पुराना जाता और नया आता है, लेकिन नदी कायम है। उसका मूल कायम है। ठीक इसी तरह आत्मा प्रकृति से अलग है, मन से भी अलग है। फिर भी हम आत्मा को प्रकृति से अलग नहीं करते : अविविच्य – अविवेक के कारण। धान का छिलका हटाने पर ही हमें चावल मिलता है। छिलका हटाना ही पड़ता है। लेकिन मूर्ख मनुष्य प्रकृति से, मन से आत्मा को अलग नहीं समझता। अतएव वह स्पर्श-संमूढ बनता है, यानि स्पर्श के मोह में पड़कर फँसता है। इसी कारण उसके पीछे संसार लग जाता है। यहाँ विषयासक्त को ‘स्पर्श-संमूढ’ कहा है। जो स्पर्श के मोह में पड़ता है, वह मरे हुए मनुष्य को भी पकड़ता है, विवेक नहीं करता।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भागवत-11.22.46
- ↑ 1. गर्भाधान, 2. गर्भवद्धि, 3. जन्म, 4. बाल्य, 5. कौमार, 6. यौवन, 7. प्रौढ़ावस्था, 8. जरा और 9. मृत्यु – ये वे अवस्थाएँ हैं।
- ↑ भागवत-11.22.50
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