भागवत धर्म मीमांसा2. भक्त लक्षण
तीन प्रकार के भक्तों का वर्णन हो गया। अब भगवान उनमें से उत्तम भक्त के विशेष लक्षण बता रहे हैः '(3.4) गृहीत्वाऽपींद्रियैरर्थान् यो न द्वेष्टि न हृष्यति जो इंद्रियों से विषयों का ग्रहण करते हुए भी चित्त में हर्ष और द्वेष पैदा होने नहीं देता, उसे उत्तम भक्त मानना चाहिए। अनुकूल विषयों से प्रसन्नता और प्रतिकूल विषयों से खेद, यह वह नहीं जानता। वह समझता है कि अनुकूल प्रतिकूल सभी विषय विष्णु की माया है। एक कहेगा ‘तरकारी में नमक अधिक है’, तो दूसरा कहेगा ‘फीका है।’ यह सारा इंद्रियों की आदत पर निर्भर है। इसीलिए आश्रम में हम लोग तरकारी में नमक डालते ही नहीं थे। जिसे चाहिए, वह ऊपर से ले लेता था। आख़िर तय किया कि नमक की आवश्यकता ही नहीं और उसका उपयोग ही छोड़ दिया। बंदर तरकारी तोड़-तोड़कर खाते हैं, तो कहाँ नमक की राह देखते हैं? मतलब, यह सारा इंद्रियों की आदत पर निर्भर है। भगवान कहते हैं कि इसलिए हर्ष खेद से दूर रहो। हमें धीरे-धीरे उत्तम भक्त के दर्जे में ले जाने का भगवान का यह तरीका है। '(3.5) देहेंद्रिय-प्राण-मनो-धियां यो
जन्म और अप्ययन यानि मरण संसार धर्म है। कुछ लोग बाबा को सालों तक पत्र नहीं लिखते। लेकिन तीन प्रसंगों पर उनके पत्र अवश्य आते हैं- किसी की मृत्यु पर, जन्म पर और शादी पर। जन्म हुआ तो सब प्रसन्न होते हैं, मृत्यु पर रोने लगते हैं। ज्ञानदेव महाराज ने वर्णन किया है कि लड़का पैदा होता है, तो वह बेचारा रोता है, लेकिन बाकी सारे खुशी मनाते हैं। यह निश्चित है कि जन्म-मृत्यु होना ही है, और वह होता है, त उस समय रोना ही है। पर कहीं तो मैंने देखा कि मृत्यु पर किराये से रोनेवाले बुलाते हैं। यानि वह एक विधि ही मानी गयी। शास्त्रकार तो कहता है कि ‘कोई मर जाय और आप रोते हैं तो मरने वाले की गति में बाधा आती है।’ लेकिन कोई इसका ख्याल नहीं करता। आत्मा की अमरता के विषय में हिंदुस्तान में जितना प्रचार हुआ है, उतना कहीं नहीं, और मरने पर रोना-धोना भी यहीं सबसे अधिक चलता है किंतु जिसने हरि-स्मरण रूपी बख़्तर पहन लिया है, उसे दुःख होता ही नहीं।
ये धर्म किसके हैं? देह के और इंद्रियों के भी। आत्मा के साथ उनका कोई संबंध नहीं। फिर सवाल आयेगा कि ऐसा है, तो फिर दुःख क्यों करते हो? भय क्यों करते हो? भय है तो देह के साथ है, दुःख है तो मन के साथ, इंद्रियों के साथ है। फिर तुम रोते क्यों हो? मतलब यह कि इन भावनाओं का प्रभाव नहीं होने देना चाहिए।
मनुष्य जब तक डरता रहा, तभी तक उसे राक्षस के जुल्म के नीचे दबना पड़ा। इसलिए ध्यान में रखना चाहिए कि डर से हम कोई गलत काम न करें। इतने गंभीर दर्शन की पहचान न होगी, तो मानवता नीचे गिरेगी। आज पेट के लिए मनुष्य चाहे जो काम करने के लिए तैयार होता है। इससे मानवता नीचे गिरती है। लेकिन उत्तम भक्त ऐसा कभी नहीं करेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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