भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 8

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2. भागवत-धर्म

9. खं वायुमग्निं सलिलं महीं च
ज्योतींषि सत्त्वानि दिशो द्रुमादीन्।
सरित्-समुद्रांश्च हरेः शरीरं
यत्-किं-च भूतं प्रणमेदनन्यः॥
अर्थः
( अधिक क्या कहें? ) आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, नक्षत्र, प्राणी, दिशाएँ, वृक्ष-वनस्पति, नदियाँ, समुद्र आदि जो कुछ भूत सृष्टि है, वह सब हरिरूप है ऐसी भावना करके वह उन्हें अनन्य भाव से नमस्कार करेगा।
 
10. भक्तिः परेशानुभवो विरक्तिर्
अन्यत्र चैष त्रिक ऐककालः।
प्रपद्यमानस्य यथाश्नतः स्युस्
तुष्टिः पुष्टिः क्षुदपायोऽनुघासम्।।
अर्थः
भोजन करने वाले को प्रत्येक कौर के साथ जिस प्रकार तुष्टि, पुष्टि और क्षुधा-शांति प्राप्त हो जाते हैं, उसी प्रकार शरणागत को भक्ति, परमेश्वर-साक्षात्कार और अन्य वस्तुओं से वैराग्य- ये तीनों एक साथ प्राप्त हो जाते हैं।
 
11. इत्यच्युतांघ्रि भजतोऽनुवृत्त्या
भक्तिर् विरक्तिर् भगवत्-प्रबोधः।
भवन्ति वै भागवतस्य राजन्
ततः परां शांतिमुपैति साक्षात्।।
अर्थः
राजन! इस प्रकार अच्युत चरणों की अखंड वृत्ति से सेवा करने वाले भागवत को भक्ति, विरक्ति और भगवत्स्वरूप का ज्ञान प्राप्त होता है और तत्पश्चात उसे साक्षात परम शांति प्राप्त होती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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