प्रेमवाटिका -रसखान पृ. 9

प्रेमवाटिका -रसखान

दोहा 41-45

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स्‍वारथमूल अशुद्ध त्‍यों, शुद्ध स्‍वभावनुकूल।
नारदादि प्रस्‍तार करि, कियौ जाहि को तूल।।41।।

रसमय स्‍वाभाविक बिना, स्‍वारथ अचल महान।
सदा एकरस शुद्ध सोइ, प्रेम अहै रसखान।।42।।

जातें उपजत प्रेम सोइ, बीज कहावत प्रेम।
जामें उपजत प्रेम सोइ, क्षेत्र कहावत प्रेम।।43।।

जातें पनपत बढ़त अरु, फूलत फलत महान।
सो सब प्रेमहिं प्रेम यह, कहत रसिक रसखान।।44।।

वही बीज अंकुर वही, सेक वही आधार।
डाल पात फल फूल सब, वही प्रेम सुखसार।।45।।

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