सुजान-रसखान पृ. 42

सुजान-रसखान

नटखट कृष्‍ण

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कवित

अंत ते न आयौ याही गाँवरे को जायौ,
माई बाप रे जिवायौ प्‍याइ दूध बारे बारे को।
सोई रसखानि पहिचानि कानि छांड़ि चाहे,
लोचन नचावत नचया द्वारे द्वारे को।
मैया की सौं सोच कछू मटकी उतारे को न,
गोरस के ढारे को न चीर चीर डारे को।
यहै दुख भारी गहै डगर हमारी माँझ,
नगर हमारे ग्‍वाल बगर हमारे को।।99।।

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