सुजान-रसखान पृ. 110

सुजान-रसखान

उद्धव-उपदेश

Prev.png

सवैया

जोग सिखावत आवत है वह कौन कहावत को है कहाँ को।
जानति हैं बर नागर है पर नेकहु भेद लख्‍यौ नहिं ह्याँ को।
जानति ना हम और कछू मुख देखि जियै नित नंदलला को।
जात नहीं रसखानि हमैं तजि राखनहारी है मोरपखा को।।248।।

अंजन मंजन त्‍यागौ अली अंग धारि भभूत करौ अनुरागै।
आपुन भाग कर्यौ सजनी इन बावरे ऊधो जू को कहाँ लागै।
चाहै सो और सबै करियै जू कहै रसखान सयानप आगै।
जो मन मोहन ऐसी बसी तो सबै री कहौ मुय गोरस जागै।।249।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः