सुजान-रसखान पृ. 16

सुजान-रसखान

रूप-माधुरी

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सवैया

मोतिन लाल बनी नट के, लटकी लटवा लट घूँघरवारी।
अंग ही अंग जराव लसै अरु सीस लसै पगिया जरतारी।
पूरब पुन्‍यनि तें रसखानि सु मोहिनी मूरति आनि निहारी।
चारयौ दिसानि की लै छबि आनि के झाँकै झरोखे मैं बाँके बिहारी।।33।।

आवत हैं बन तें मनमोहन गाइन संग लसै ब्रज-ग्‍वाला।
बेनु बजावत गावत गीत अभीत इतै करिगौ कछु ख्‍याला।
हेरत टेरि थकै जहुं ओर तैं झाँकि झरोखन तें ब्रज-बाला।
देखि सुर आनन कों रसखानि तज्‍यौ सब द्यौस को ताप-कसाला।।34।।

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