सुजान-रसखान पृ. 36

सुजान-रसखान

कृष्‍ण सौंदर्य

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दोहा

जोहन नंदकुमार कों, गई नंद के गेह।
मोहिं देखि मुसकाइ कै, बरस्‍यौ मेह सनेह।।83।।

सवैया

मोरपखा सिर कानन कुंडल कुंतल सों छबि गंडनि छाई।
बंक बिसाल रसाल बिलोचन हैं दुखमौचन मोहन माई।
आली नवीन यह घन सो तन पीट घट ज्‍यौं पठा बनि आई।
हौं रसखानि जकी सी रही कछु टोना चलाइ ठगौरी सी लाई।।84।।

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