सुजान-रसखान पृ. 72

सुजान-रसखान

प्रेम-वेदन

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सवैया

वह गोधन गावत गोधन मैं जब तें इहि मारग ह्वै निकस्‍यौ।
तब ते कुलकानि कितीय करौ यह पापी हियो हुलस्‍यौ हुलस्‍यौ।
अब तौ जू भईसु भई नहिं होत है लोग अजान हँस्‍यौ सुहँस्‍यौ।
कोउ पीर न जानत सो तिनके हिय मैं रसखानि बस्‍यौ।।166।।

वा मुस्कान पै प्रान दियौ जिय जान दियौ वहि तान पै प्‍यारी।
मान दियौ मन मानिक के संग वा मुख मंजु पै जोबनवारी।।
वा तन कौं रसखानि पै री ताहि दियौ नहि ध्‍यान बिचारी।
सो मुंह मौरि करी अब का हुए लाल लै आज समाज में ख्‍वारी।।167।।

मोहन सों अटक्‍यौ मनु री कल जाते परै सोई क्‍यौं न बतावै।
व्‍याकुलता निरखे बिन मूरति भागति भूख न भूषन भावै।।
देखे तें नैकु सम्‍हार रहै न तबै झुकि के लखि लोग लजावै।
चैन नहीं रसखानि दुहुँ विधि भूली सबैं न कछू बनि आवें।।168।।

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