सुजान-रसखान पृ. 8

सुजान-रसखान

अनन्‍य भाव

Prev.png

सवैया

सेष सुरेस दिनेस गनेस अजेस धनेस महेस मनावौ।
कोऊ भवानी भजौ मन की सब आस सबै विधि जोई पुरावौ।
कोऊ रमा भजि लेहु महाधन कोऊ कहूँ मन वाँछित पावौ।
पै रसखानि वही मेरा साधन और त्रिलौक रहौ कि बसावौ।।16।।

द्रौपदी अरु गनिका गज गीध अजामिल सों कियो सो न निहारो।
गौतम-गेहिनी कैसी तरी, प्रहलाद को कैसे हर्यो दुख भारो।
काहे कौं सोच करै रसखानि कहा करि है रबिनंद विचारो।
ताखन जाखन राखियै माखन-चाखनहारो सो राखनहारो।।17।।

देस बदेस के देखे नरेसन रीझ की कोऊ न बूझ करैगो।
तातें तिन्‍हैं तजि जानि गिरयौ गुन सौगुन गाँठि परैगो।
बाँसुरीबारो बड़ो रिझवार है स्‍याम जु नैसुक ढार ढरैगौ।
लाड़लौ छैल वही तौ अहीर को पीर हमारे हिये की हरैगौ।।18।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः