प्रेम वाटिका
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पूरा नाम | सैय्यद इब्राहीम (रसखान) |
जन्म | सन् 1533 से 1558 बीच (लगभग) |
जन्म भूमि | पिहानी, हरदोई ज़िला, उत्तर प्रदेश |
कर्म भूमि | महावन (मथुरा) |
कर्म-क्षेत्र | कृष्ण भक्ति काव्य |
मुख्य रचनाएँ | 'सुजान रसखान' और 'प्रेमवाटिका' |
विषय | सगुण कृष्णभक्ति |
भाषा | साधारण ब्रज भाषा |
विशेष योगदान | प्रकृति वर्णन, कृष्णभक्ति |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जिन मुस्लिम हरिभक्तों के लिये कहा था, "इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिए" उनमें "रसखान" का नाम सर्वोपरि है। |
प्रेम वाटिका भक्तिकालीन कवि रसखान द्वारा लिखी गई एक प्रसिद्ध कृति है। इस कृति की रचना संवत 1671 में की गई थी। रसखान की इस कृति में कुल 53 दोहे हैं। हिन्दी साहित्य में कृष्ण भक्त तथा भक्तिकालीन कवियों में रसखान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्हें 'रस की खान (क़ान)' कहा जाता है। इनके काव्य में भक्ति रस, श्रृंगार रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं।
साहित्यिक विशेषता
'प्रेम वाटिका' में राधा-कृष्ण को प्रेमोद्यान का मालिन-माली मान कर प्रेम के गूढ़ तत्त्व का सूक्ष्म निरूपण किया गया है। इस कृति में रसखान ने प्रेम का स्पष्ट रूप में चित्रण किया है। प्रेम की परिभाषा, पहचान, प्रेम का प्रभाव, प्रेम प्रति के साधन एवं प्रेम की पराकाष्ठा 'प्रेम वाटिका' में दिखाई पड़ती है। रसखान द्वारा प्रतिपादित प्रेम लौकिक प्रेम से बहुत ऊँचा है। रसखान ने 53 दोहों में प्रेम का जो स्वरूप प्रस्तुत किया है, वह पूर्णतया मौलिक है। रसखान के काव्य में आलंबन श्रीकृष्ण, गोपियाँ एवं राधा हैं। 'प्रेम वाटिका' में यद्यपि प्रेम सम्बन्धी दोहे हैं, किन्तु रसखान ने उसके माली कृष्ण और मालिन राधा ही को चरितार्थ किया है। आलम्बन-निरूपण में रसखान पूर्णत: सफल हुए हैं। वे गोपियों का वर्णन भी उसी तन्मयता के साथ करते हैं, जिस तन्मयता के साथ कृष्ण का।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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