कमलतंतु सो छीन अरु, कठिन खड़ग की धार।
अति सूधो टेढ़ो बहुरि, प्रेमपंथ अनिवार।।6।।
लोक वेद मरजाद सब, लाज काज संदेह।
देत बहाए प्रेम करि, विधि निषेध को नेह।।7।।
कबहुँ न जा पथ भ्रम तिमिर, दहै सदा सुखचंद।
दिन दिन बाढ़त ही रहत, होत कबहुँ नहिं मंद।।8।।
भले वृथा करि पचि मरौ, ज्ञान गरूर बढ़ाय।
बिना प्रेम फीको सबै, कोटिन किए उपाय।।9।।
श्रुति पुरान आगम स्मृति, प्रेम सबहि को सार।
प्रेम बिना नहिं उपज हिय, प्रेम-बीज अँकुवार।।10।।