प्रेमवाटिका -रसखान पृ. 1

प्रेमवाटिका -रसखान

दोहा 1-5

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प्रेम-अयनि श्रीराधिका, प्रेम-बरन नँदनंद।
प्रेमवाटिका के दोऊ, माली मालिन द्वंद्व।।1।।

प्रेम-प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोय।
जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्‍यौं रोय।।2।।

प्रेम अगम अनुपम अमित, सागर सरिस बखान।
जो आवत एहि ढिग, बहुरि, जात नाहिं रसखान।।3।।

प्रेम-बारुनी छानिकै, बरुन भए जलधीस।
प्रेमहिं तें विष-पान करि, पूजे जात गिरीस।।4।।

प्रेम-रूप दर्पन अहो, रचै अजूबो खेल।
यामें अपनो रूप कछु लखि परिहै अनमेल।।5।।

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