ज्ञानेश्वरी पृ. 529

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

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अध्याय-14
गुणत्रय विभाग योग

वह या तो हाथ उठाकर उस पर गाल रख लेता है अथवा घुटनों में ही अपना सिर छिपा लेता है। निद्रा को तो वह बहुत बड़ी निधि समझता है और जब उसे एक बार नींद आ जाती है, तब वह उसे स्वर्ग-सुख से कम नहीं समझता। वह यही चाहता है कि मुझे ब्रह्मा की तरह उम्र मिल जाय और मैं पूरी उम्र सोता रहूँ। यदि वह रास्ता चलते समय बीच में कहीं विश्राम हेतु बैठ जाता है, तो वहीं बैठे-बैठे उँघने लगता है। जब वह निद्राधीन हो जाता है, तब उसे यदि कोई अमृत भी देने लगे तो उसे इतना होश भी नहीं होता कि वह उठकर अमृत ले सके। यदि कभी-कभार उसके जिम्मे कोई काम आ जाता है तो वह क्रोध से मानों अन्धा हो जाता है। उस समय उसकी समझ में कुछ भी नहीं आता कि कब किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये, किसके साथ किस तरह की बातें करनी चाहिये और कौन-सी बात साध्य है तथा कौन-सी असाध्य है। जैसे कोई पतिंगा केवल अपने पंखों की सहायता से ही दावाग्नि को शमन करने का हौसला रखता है, वैसे ही वह साहस में प्रवृत्त होता है और धृष्टतापूर्वक असम्भव कार्यों में हाथ डाल बैठता है। किंबहुना उसे प्रमाद ही भाता है। इस प्रकार निद्रा, आलस्य और प्रमाद- इन तीन बन्धनों से तमोगुण उस आत्मा को कसकर बाँध लेता है, जो मूलतः निरंजन और शुद्ध होती है। जब किसी काष्ठ में आग लग जाती है, तब वह आग उस काष्ठ के आकार में ही भासमान होती है और घट में समाविष्ट आकाश घट के आकार का ही भासमान होता है तथा उसे लोग घटाकाश के नाम से पुकारते हैं अथवा जल से भरे हुए सरोवर में चन्द्रमा का बिम्ब पड़ा हुआ दिखायी देता है। ठीक इसी प्रकार इन गुणों से युक्त होने पर आत्मतत्त्व भी बद्ध-सा प्रतीत होता है।[1]

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टीका टिप्पडी और संदर्भ

  1. (174-195)

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

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