ज्ञानेश्वरी पृ. 476

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

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अध्याय-13
क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग

कृतघ्न व्यक्ति के साथ किया हुआ उपकार, चोर के हवाले किया हुआ धन अथवा निर्लज्ज व्यक्ति को दी हुई चेतावनी वैसे ही व्यर्थ जाती है, जैसे घर में घुस आने वाले कुत्ते को यदि उसके कान और पूँछ काटकर भगा दिया जाय तो भी वह कुत्ता कटे हुए अंग का खून सूखने से पहले ही निर्लज्जतापूर्वक घर में घुस आता है अथवा जैसे सर्प के मुख में जाते समय भी मक्खियों को पकड़ने के लिये मेढक अपनी जीभ बाहर निकाले रहता है, वैसे ही जिस व्यक्ति को उस दशा में भी खेद नहीं होता, जबकि उसके शरीर की समस्त इन्द्रियों के द्वार निरन्तर बहते रहते हैं, शरीर में नाशक घुन लगा रहता है, जो माता के उदररूपी गुफा में, मल-मूत्र में नौ महीने तक पड़ा रहने पर भी गर्भावस्था के दुःखों अथवा जन्म के समय होने वाले कष्टों का भी स्मरण नहीं करता, जो मल-मूत्र में लोटते हुए बच्चों को देखकर भी घृणा नहीं करता और इसी तरह की बातों से नहीं उकताता, जो यह कभी सोचता भी नहीं कि अभी कल ही पिछला जन्म समाप्त हुआ है और फिर कल ही नया जन्म आने वाला है, जिसे अपने जीवन के अच्छे दिनों में मृत्यु का स्मरण नहीं होता, जिसे सदा इस बात का भरोसा रहता है कि मेरी ऐसी ही अच्छी अवस्था सदा बनी रहेगी और इसी भरोसे के कारण जिसकी समझ में ही यह नहीं आता कि मृत्यु नाम की भी कोई चीज है, जिसकी अवस्था किसी गड्ढे में रहने वाली उस मछली की भाँति होती है, जो यह समझती है कि यह गड्ढा कभी सूखेगा ही नहीं और यही सोचकर जो किसी गहरे दह में नहीं जाती अथवा जिसकी अवस्था उस हिरण की तरह होती है, जो शिकारी के गीत में ही इतना निमग्न हो जाता है कि उस शिकारी को देखना भी भूल जाता है अथवा उस मछली की भाँति होती है जो बंसी का काँटा नहीं देखती और उस पर का आमिष (मांस) खाने का प्रयत्न करती है अथवा जिसकी अवस्था उस पतंग की तरह होती है, जो दीपक की लौ देखते ही इस बात को भूल जाता है कि यह दीपक मुझे जला डालेगा, वही अज्ञानी है।

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

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