ज्ञानेश्वरी पृ. 295

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

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अध्याय-9
राज विद्याराज गुह्ययोग

इस प्रकार महासुख के उस अपार रस में डूबने के कारण उन्हें अपने शरीर की भी सुधि नहीं रह गयी और युद्ध का वृतान्त सुनाने का जो काम श्रीवेदव्यास जी महाराज ने उन्हें सौंपा था, उसके विषय में ऐसा प्रतीत होने लगा कि मानो वह काम अब उनसे न हो सकेगा। इतने में भगवान् श्रीकृष्ण की वाणी ने उनके श्रवणेन्द्रियों में प्रविष्ट किया, जिससे संजय के होश फिर ठिकाने हुए और वे फिर युद्ध का वृत्तान्त सुनाने को उद्यत हुए। तत्पश्चात् उन्होंने आँखों के आँसू पोंछे, पूरे शरीर का स्वेद भी पोंछा और तब धृतराष्ट्र से कहा कि हे महाराज! अब मैं आपको इसके आगे का समाचार सुनाता हूँ; मनोयोगपूर्वक सुनें। श्रीकृष्ण के वचन तो सुन्दर बीज हैं ही, पर अब ऐसा सुअवसर आया है कि संजय की सात्त्विक वृत्तिरूपी जमीन उस बीज बोने के लिये तैयार है। अत: अब निःसन्देह श्रोताओं को सिद्धान्त की बढ़िया फसल तैयार होकर मिलेगी। हे श्रोतावृन्द! आप लोग इस कथन की ओर और थोड़ा ध्यान दें तथा आनन्द की राशि पर बैठें। आज आप लोगों के कानों का भाग्य खुल गया है। अब सिद्धों के स्वामी श्रीकृष्ण अर्जुन के समक्ष ईश्वरीय विभूति के स्थान का वर्णन करेंगे। श्रीनिवृत्तिनाथ के दास ज्ञानदेव का आप लोगों से विनम्र निवेदन है कि वह वर्णन आप लोग ध्यानर्वूक सुनें।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

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