श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-7
ज्ञानविज्ञान योग
इस प्रकार भक्तों के अलावा बहुतेरे ऐसे ही लोग होते हैं, जिन पर अहंकार का भूत चढ़ा रहता है; इसीलिये वे लोग आत्मज्ञान का विस्मरण कर जाते हैं। वेद का कथन है कि जिस समय व्यक्ति के अन्दर इस प्रकार के अहंकार का संचरण होता है, उस समय नियमरूपी वस्त्र की सुधि ही नहीं रहती, भावी अधःपतन की लज्जा विनष्ट हो जाती है और प्राणी न करने-योग्य कार्यों को भी करने लगता है। इस प्रकार के जीव इन्द्रियग्राम के राजमार्ग में अहंता और ममता की निरर्थक वार्ता करते हुए नानाविध विकारों का समुदाय इकट्ठा करते हैं और जब अन्त में उनके ऊपर शोक और दुःख के बराबर आघात होने लगते हैं, तब उनकी स्मृति का विनाश हो जाता है। यही माया ही इन सबका मूल कारण है। इसी के कारण वे सारे जीव मुझे भुला बैठे हैं। आत्महित का साधन करने वाले मेरे भक्तों की चार कोटियाँ हैं-आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (103-109)
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