सातवां अध्याय
प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता
34. सकाम भक्ति का भी मूल्य है
10. स्त्रियां सुबह उठकर नाना प्रकार के व्रत आदि करती हैं, काकड़ा[1] आरती करती हैं, तुलसी की परिक्रमा करती है। किसलिए? मरने के बाद परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त हो। उनके मन की ये भोली धारणाएं हो सकती हैं। परन्तु उनके लिए वे व्रत, जप, उपवास आदि अनुष्ठान करती हैं। ऐसे व्रतशील परिवार में महापुरुषों का जन्म होता है। तुलसीदास के कुल में रामतीर्थ उत्पन्न हुए। रामतीर्थ फारसी भाषा के पंडित थे। किसी ने कह दिया- "तुलसीदास के कुल में जनमे हो और तुम संस्कृत नहीं जानते!" रामतीर्थ को यह बात चुभ गयी। कुल स्मृति का यह कितना सामर्थ्य है। इससे प्रेरित होकर वे संस्कृत के अध्ययन में जुट गये। स्त्रियां जो भक्तिभाव रखती हैं, उसकी दिल्लगी नहीं उड़ानी चाहिए। जहाँ भक्ति का ऐसा एक-एक कण संचित होता है, वहाँ तेजस्वी संतति उत्पन्न होती है। इसीलिए भगवान कहते हैं- "मेरा भक्त सकाम होगा, तो भी उसकी भक्ति दृढ़ करूंगा। उसके मन में उलझन नहीं होने दूंगा। यदि वह मुझसे सच्चे हृदय से प्रार्थना करेगा कि मेरा रोग दूर कर दो, तो मैं उसके आरोग्य की भावना को पुष्ट करके उसका रोग दूर कर दूंगा। किसी भी निमित्त से क्यों न हो, वह मेरे पास आयेगा तो मैं उसकी पीठ पर हाथ फेरकर उसकी कद्र ही करूंगा।" ध्रुव को ही देखो। पिता की गोद में नहीं बैठ पाया, तो उसकी मां ने कहा, "ईश्वर से स्थान मांग।" वह उपासना में जुट पड़ा। भगवान ने उसे अचल स्थान दे दिया। मन निष्काम न हो, तो भी क्या? महत्त्व की बात तो यह है कि मनुष्य जाता किसके पास है, मांगता किससे है? दुनिया के सामने हाथ पसारकर ईश्वर से मांगने की वृत्ति बड़े महत्त्व की है। 11. निमित्त कुछ भी हो, एक बार आप भक्ति-मंदिर में जाओ तो सही। पहले यदि कामना लेकर भी जाओगे, तो भी आगे चलकर निष्काम हो जाओगे। प्रदर्शनियां की जाती हैं। उनके संचालक कहते हैं- "अजी, आप आकर देखिए, कैसी, बढ़िया, रंगीन, महीन खादी बनने लगी है। जरा नये-नये नमूने तो देखिए।" मनुष्य आता है और प्रभावित होता है। यही बात भक्ति की है। भक्ति मंदिर में एक बार प्रवेश तो करो, फिर वहाँ का सौंदर्य और सामर्थ्य अपने-आप मालूम हो जायेगा। स्वर्ग जाते हुए धर्मराज के साथ अंत में एक कुत्ता ही रह गया। भीम, अर्जुन सब रास्ते में गल गये। स्वर्ग-द्वार के पास धर्मराज से कहा गया- "तुम आ सकते हो, परन्तु कुत्ते को मनाही है।" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सुबह की जाने वाली बड़ी बाती वाली विशिष्ट आरती।
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