सातवां अध्याय
प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता
34. सकाम भक्तिका भी मूल्य है
9. भगवान ने भक्त के तीन प्रकार बतलाये हैं-
सकाम भक्ति करने वाला यानि क्या? कुछ इच्छा मन में रखकर भगवान के पास जाने वाला। मैं उसकी यह कहकर निंदा नहीं करूंगा कि यह भक्ति निकृष्ट प्रकार की है। बहुत लोग सार्वजनिक सेवा-क्षेत्र में इसीलिए कूदते हैं कि मान-सम्मान मिले। इसमें हर्ज क्या है? आप उन्हें खूब मान दीजिए। मान देने से कुछ बिगड़ेगा नहीं। ऐसा मान मिलते रहने से आगे सार्वजनिक सेवा में वे सुस्थिर हो जायेंगे। फिर उसी काम में उन्हें आनंद मालूम होने लगेगा। मान पाने की जो इच्छा होती है, उसका भी अर्थ आखिर क्या है? यही कि उस सम्मान से हमें विश्वास हो जाता है कि जो काम हम करते हैं, वह उत्तम हैं। मेरी सेवा अच्छी है या बुरी, यह समझने के लिए जिसके पास कोई आंतरिक साधन नहीं है, वह इस बाह्य साधन का सहारा लेता है। मां ने बच्चे की पीठ ठोंककर कहा ‘शाबाश’, तो उसकी तबीयत होती है कि मां का और काम करूं। यही बात सकाम भक्त की है। सकाम भक्त सीधा परमेश्वर के पास जाकर कहेगा - "दो।" सब कुछ परमेश्वर से मांगना कोई मामूली बात नहीं। यह असाधारण बात है। ज्ञानदेव ने नामदेव से पूछा- "तीर्थयात्रा के लिए चलते हो?" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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