संजय बोले- हे राजन्! इस प्रकार मैंने भगवान् वासुदेव और महात्मा अर्जुन का यह रोमान्चकारी अद्भुत संवाद सुना।।74।।
यह संवाद तुम्हें सुनने को कैसे मिला संजय?
यह अत्यन्त गोपनीय संवाद मैंने व्यास जी की कृपा से साक्षात् योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण के कहते-कहते सुना है, परम्परा से नहीं।।75।।
इस संवाद को सुनने से तुम्हारे पर क्या असर हुआ संजय?
हे राजन्! भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन के इस पवित्र और अद्भुत संवाद को याद कर-करके मैं बार-बार हर्षित हो रहा हूँ।।76।।
हर्षित होने का और क्या कारण है?
हे राजन! भगवान् श्रीकृष्ण के उस अत्यन्त अद्भुत विराट्रूप को याद कर-करके मेरे को बड़ा आश्चर्य हो रहा है और मैं बार-बार हर्षित हो रहा हूँ।।77।।
अब तुम किस निर्णयपर पहुँचे हो संजय?
जहाँ योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीव-धनुषधारी अर्जुन हैं, वहाँ ही श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है-यही मेरा निश्चय है।।78।।
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